SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 129
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ एस धम्मो सनंतनो शिष्य जानकारी की खोज में नहीं निकला है, जानने की कला की खोज में निकला है। शिष्य का ध्यान जो जाना जाना है उस पर नहीं है, जो जानेगा उस पर है। विद्यार्थी आब्जेक्टिव है। बाहर उसकी नजर है। शिष्य सब्जेक्टिव है। भीतर उसकी नजर है। वह यह कह रहा है कि पहले तो मैं जाग जाऊं, फिर जानना तो गौण बात है । जाग गया तो जहां मेरी नजर पड़ेगी, वहीं ज्ञान पैदा हो जाएगा। जहां देखूंगा, वहीं झरने उपलब्ध हो जाएंगे ज्ञान के । पर मेरे भीतर जागना हो जाए। विद्यार्थी सोया है और संग्रह कर रहा है । सोए लोग ही संग्रह करते हैं, जागों ने संग्रह नहीं किया । न धन का, न ज्ञान का, न यश का, न पद का । सोया आदमी संग्रह करता है। सोया आदमी मात्रा की भाषा में सोचता है। जीतेगा ? बड़ा अजीब उत्तर देते हैं बुद्ध, शिष्य जीतेगा । कोई योद्धा नहीं । और शिष्य के होने की पहली शर्त यह है कि जिसने अपनी हार स्वीकार कर ली हो। जिसने यह कहा हो कि मैं अब तक जान नहीं पाया। चला बहुत, पहुंचा नहीं । सोचा बहुत, समझा नहीं। सुना बहुत, सुन नहीं पाया। देखा बहुत, भ्रांति रही, क्योंकि देखने वाला सोया था। जो हार गया है आकर, जिसने गुरु के चरणों में सिर रख दिया और कहा कि मैं कुछ भी नहीं जानता हूं, जिसने अपने सिर के साथ अपनी जानकारी भी सब गुरु के चरणों पर रख दी, वही सीखने को कुशल हुआ, सीखने में सफल हुआ। सीखने की क्षमता उसे उपलब्ध हुई । जिसने जाना कि मैं नहीं जानता हूं, वही शिष्य है। कठिन है। क्योंकि अहंकार कहता है कि मैं और नहीं जानता ! पूरा न जानता होऊं, थोड़ा तो जानता हूं। सब न जान लिया हो, पर बहुत जान लिया है। बुद्ध के पास एक महापंडित आया, सारिपुत्र । वह बड़ा ज्ञानी था। उसे सारे वेद कंठस्थ थे। उसके खुद पांच हजार शिष्य थे - शिष्य नहीं, विद्यार्थी कहने चाहिए। लेकिन वह समझता था कि शिष्य हैं, क्योंकि वह समझता था मैं ज्ञानी हूं। जब वह बुद्ध के पास आया और उसने बहुत से सवाल उठाए, तो बुद्ध ने कहा, ये सब सवाल पांडित्य के हैं। ये सवाल शास्त्रों से पैदा हुए हैं। ये तेरे भीतर नहीं पैदा हो रहे हैं, सारिपुत्र ! ये सवाल तेरे नहीं हैं, ये सवाल उधार हैं। तूने किताबें पढ़ी हैं। किताबों से सवाल पैदा हो गए हैं। अगर ये किताबें तूने न पढ़ी होतीं, तो ये सवाल पैदा न होते। अगर तूने दूसरी किताबें पढ़ी होतीं, तो दूसरे सवाल पैदा होते। ये सवाल तेरी जिंदगी के भीतर से नहीं आते, ये तेरे अंतस्तल से नहीं उठे, ये अस्तित्वगत नहीं हैं, बौद्धिक हैं । सारिपुत्र अगर सिर्फ पंडित ही होता, तो नाराज होकर चला गया होता। उसने आंखें झुकायीं, उसने सोचा । उसने देखा कि बुद्ध जो कह रहें हैं उसमें तथ्य कितना है ? और तथ्य पाया। उसने सिर उनके चरणों में रख दिया। उसने कहा कि मैं अपने सवाल वापस ले लेता हूं। ठीक कहते हैं आप, ये सवाल मेरे नहीं हैं। अब तक मैं इन्हें अपना मानता रहा। और जब सवाल ही अपना न हो, तो जवाब अपना कैसे 110
SR No.002379
Book TitleDhammapada 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages266
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy