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________________ केवल शिष्य जीतेगा उसे वेद कंठस्थ हैं। उसे उपनिषदों के वचन याद हैं। उसे बुद्धपुरुषों की गाथाएं शब्दशः स्मरण में हैं। उसकी स्मृति भरी-पूरी है। और उसे भरोसा है कि मैं जानता हूं। वह कभी भी जान न पाएगा। क्योंकि जगह चाहिए। तुम पहले से भरे हो। खाली होना जरूरी है। कौन है शिष्य? जिसे यह बात समझ में आ गई कि अब तक मैंने कुछ जाना नहीं। तुम्हें भी कभी-कभी यह बात समझ में आती है, लेकिन तुम्हें इस तरह समझ में आती है कि सब न जाना हो, थोड़ा तो मैंने जाना है। वहीं धोखा हो जाता है। एक बात तुम्हें कह दूं, या तो जानना पूरा होता है, या बिलकुल नहीं होता। थोड़ा-थोड़ा नहीं होता। या तो तुम जीते हो, या मरते हो। या तो मरे, या जिंदा। तुम ऐसा नहीं होते कि थोड़े-थोड़े जिंदा। या तो तुम जागे, या सोए। थोड़े-थोड़े जागे, थोड़े-थोड़े सोए, ऐसा होता ही नहीं। अगर तुम थोड़े भी जागे हो, तो तुम पूरे जागे हो। जागने के खंड नहीं किए जा सकते। ज्ञान के खंड नहीं किए जा सकते। यही पांडित्य और बुद्धत्व का फर्क है। पांडित्य के खंड किए जा सकते हैं। तुमने पहली परीक्षा पास कर ली, दूसरी कर ली, तीसरी कर ली, बड़े पंडित होते चले गए। एक शास्त्र जाना, दूसरा जाना, तीसरा जाना, मात्रा बढ़ती चली गई। पांडित्य मात्रा में है, क्वांटिटी में है। बुद्धत्व क्वालिटी में है। मात्रा में नहीं, गुण में। बुद्धत्व होने का एक ढंग है। मात्र जानकारी की संख्या नहीं है, जागने की एक प्रक्रिया। ___ इसे थोड़ा सोचो। सुबह जब तुम जाग जाते हो, क्या तुम यह कह सकते हो कि अभी मैं थोड़ा-थोड़ा जागा हूं? कौन कहेगा? इतना जानने के लिए भी कि मैं थोड़ा-थोड़ा जागा हूं, पूरा जागना जरूरी है। जागने की मात्राएं नहीं होतीं। रात जब तुम सो जाते हो, क्या तुम कह सकते हो कि मैं थोड़ा-थोड़ा सोया हूं? कौन कहेगा? जब तुम सो गए तो सो गए। कौन कहेगा कि मैं थोड़ा-थोड़ा सोया हूं? अगर तुम कहने को अभी भी मौजूद हो, तो तुम सोए नहीं, तुम जागे हो। न तो जागना बांटा जा सकता है, न सोना बांटा जा सकता है। न जीवन बांटा जा सकता, न मौत बांटी जा सकती। पांडित्य बांटा जा सकता है। जो बांटा जा सकता है, उसे तुम ज्ञान मत समझना। जो नहीं बांटा जा सकता, जो उतरता है पूरा उतरता है, नहीं उतरता बिलकुल नहीं उतरता, उसे ही तुम ज्ञान समझना। ___मेरे पास लोग आते हैं, उनको अगर मैं कहता हूं कि पहले तुम यह जानने का भाव छोड़ दो। वे कहते हैं कि इसीलिए तो हम आपके पास आए हैं। जो थोड़ा-बहुत जानते हैं, उससे कुछ सार नहीं हुआ; और जानने की इच्छा है। उनको वह जो खयाल है थोड़ा-बहुत जानने का, वही बाधा बनेगा। वह उन्हें शिष्य न बनने देगा। वे विद्यार्थी बन जाएंगे, शिष्य न बन सकेंगे। विद्यार्थी वह है जो थोड़ा जानता है, थोड़ा और जानने को उत्सुक है। विद्यार्थी यानी जिज्ञासु। जानकारी की खोज में निकला। शिष्य विद्यार्थी नहीं है, सत्यार्थी है। 109
SR No.002379
Book TitleDhammapada 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages266
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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