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केवल शिष्य जीतेगा में. क्योंकि उसकी आंखें बंद कर दी गई हैं। उसे दिखाई नहीं पड़ता। तुम्हारी आंखें भी बंद हैं।
चलने को चल रहा हूं पर इसकी खबर नहीं
मैं हूं सफर में या मेरी मंजिल सफर में है इतना भी पता नहीं है कि यह जिंदगी ही मंजिल है, या यह जिंदगी कहीं पहुंचाती है। यह बस होना काफी है, या इस होने से और एक बड़े होने का द्वार खुलने को है। मैं पर्याप्त हूं, या केवल एक शुरुआत हूं। मैं अंत हूं, या प्रारंभ हूं। मैं बीज हूं, या वृक्ष हूं। तुम जो हो, अगर वह पर्याप्त होता तो तुम आनंदित होते। क्योंकि जहां भी पर्याप्त हो जाता है, वहीं संतोष, परितृप्ति आ जाती है। जहां पर्याप्त हुए, वहीं परितोष आ जाता है।
तुम पर्याप्त तो नहीं हो, यह तुम्हारी बेचैनी कहे देती है। तुम्हारी आंख की उदासी कहे जाती है। तुम्हारे प्राणों का दुख भरा स्वर गुनगुनाए जाता है-तुम पर्याप्त नहीं हो। कुछ खो रहा है। कुछ चूका जा रहा है। कुछ होना चाहिए जो नहीं है। उसकी रिक्त जगह तुम अनुभव करते हो। वही तो जीवन का संताप है। तो फिर ऐसे ही अगर रहे और इसी को दोहराते रहे, तब तो वह रिक्त जगह कभी भी न भरेगी। तुम्हारा घर खाली रह जाएगा। जिसकी तुम प्रतीक्षा करते हो, वह कभी आएगा नहीं। जागकर देखना जरूरी है। ___ असली सवाल, कहां जा रहे हो, यह नहीं है। असली सवाल, किस मार्ग से
जा रहे हो, यह भी नहीं है। असली सवाल यही है कि जो जा रहा है, वह कौन है? जिसने अपने को पहचाना, उसके कदम ठीक पड़ने लगे। अपनी पहचान से ही ठीक कदमों का जन्म होता है। जिसने अपने को न पहचाना, वह कितने ही शास्त्र और कितने ही नक्शे और कितने ही सिद्धांत लेकर चलता रहे, उसके पैर गलत ही पड़ते रहेंगे। वह तो एक ऐसा शराबी है, जो नक्शा लेकर चल रहा है। शराबी के खुद के पैर ही ठीक नहीं पड़ रहे हैं। शराबी के हाथ नक्शे का क्या उपयोग है?
तुम्हारे हाथ में शास्त्रों का कोई उपयोग नहीं। तुम्हारे साथ शास्त्र भी कंपेगा, डगमगाएगा। शास्त्र तुम्हें न ठहरा पाएगा, तुम्हारे कारण शास्त्र भी डगमगाएगा। तुम ठहर जाओ, शास्त्र की जरूरत ही नहीं। तुम्हारे ठहरने से ही शास्त्र का जन्म होता है, दृष्टि उपलब्ध होती है, दर्शन होता है। बुद्ध के ये सारे वचन सब तरफ से एक ही दिशा की तरफ इंगित करते हैं कि जागो! प्रमाद में मत डूबे रहो, अप्रमाद तुम्हारे जीवन का आधार बने, आधारशिला बने।
पूछते हैं बुद्ध, 'कौन इस पृथ्वी और देवताओं सहित इस यमलोक को जीतेगा? कौन? कौन कुशल पुरुष फूल की भांति सुदर्शित धर्मपथ को चुनेगा? कौन?' __तुम तो कैसे चुनोगे, जैसे तुम हो। चुनना तो तुम भी चाहते हो। कांटों से कौन बचना नहीं चाहता? फूलों को कौन आलिंगन नहीं कर लेना चाहता? सुख की
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