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एस धम्मो सनंतनो
फूल लाल थे। और रामदास फिर भी जिद किए जा रहे हैं कि फूल सफेद थे।
राम ने हनुमान से कहा कि तुम माफी मांग लो। रामदास ठीक ही कहते हैं। फूल सफेद थे। हनुमान तो हैरान हो गए। उन्होंने कहा, यह तो हद्द हो गई, यह तो कोई सीमा के बाहर बात हो गई। मैंने खुद देखे, तुम भी वहां नहीं थे। और न ये रामदास थे और न तुम थे। तुमसे निर्णय मांगा यही भूल हो गई। मैं अकेला वहां मौजूद था। सीता से पूछ लिया जाए, वे मौजूद थीं।
सीता को पूछा गया। सीता ने कहा, हनुमान, तुम क्षमा मांग लो, फूल सफेद थे। संत झूठ नहीं कह सकते। होना मौजूद न होना सवाल नहीं है। अब रामदास ने जो कह दिया वह ठीक ही है। फूल सफेद ही थे। मुझे दुख होता है कि तुम्हें गलत होना पड़ रहा है, तुम्हीं अकेले एकमात्र गवाह नहीं हो, मैं भी थी, फूल सफेद ही थे। शानदार! ___ उसने कहा, यह तो कोई षड्यंत्र मालूम होता है। कोई साजिश मालूम पड़ती है। मुझे भलीभांति याद है।
राम ने कहा, तुम ठीक कहते हो, तुम्हें फूल लाल दिखाई पड़े थे, क्योंकि तुम क्रोध से भरे थे। आंखों में खून था। जब आंखों में खून हो, क्रोध हो, तो सफेद फूल कैसे दिखाई पड़ सकते हैं?
जब मैंने इस कहानी को पढ़ा तो मेरा मन हुआ, इसमें थोड़ा और जोड़ दिया जाए। क्योंकि फूल वहां थे ही नहीं। अगर हनुमान की आंखों में खून था इसलिए लाल दिखाई पड़े, तो यह रामदास के मन में एक शुभ्रता है जिसकी वजह से सफेद दिखाई पड़ रहे हैं। फूल वहां थे नहीं। मैं तुमसे कहता हूं, राम भी गलत थे, सीता भी गलत हैं, रामदास भी गलत हैं। फूल बाहर नहीं हैं। तुम्हारी आंख में ही खिलते हैं। कांटे भी बाहर नहीं हैं। तुम्हारी आंख में ही बनते हैं, निर्मित होते हैं। तुम्हें वही दिखाई पड़ जाता है जो तुम देख सकते हो।
अब तुम पूछते हो, 'आनंद की दशा में क्या बस फूल ही फूल हैं?' न तुम्हें आनंद की दशा का पता है, न तुमने कभी फूल देखे। 'कांटे क्या एक भी नहीं?'
अब तुम्हें पता ही नहीं तुम क्या पूछ रहे हो। जिसके भीतर आनंद का आविर्भाव हुआ है, उसके बाहर सिर्फ आनंद ही आनंद होता है, फूल ही फूल होते हैं। क्योंकि जो तुम्हारे भीतर है वही तुम्हारे बाहर छा जाता है। तुम्हारा भीतर ही फैलकर बाहर छा जाता है। तुम्हारा भीतर ही बाहर हो जाता है। तुम जैसे हो वैसा ही सारा अस्तित्व हो जाता है।
बुद्ध के साथ सारा अस्तित्व बुद्ध हो जाता है। मीरा के साथ सारा अस्तित्व मीरा हो जाता है। मीरा नाचती है तो सारा अस्तित्व नाचता है। बुद्ध चुप होते हैं तो सारा अस्तित्व चुप हो जाता है। तुम दुख से भरे हो, तो सारा अस्तित्व दुख से भरा है।
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