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________________ अनंत छिपा है क्षण में आखिरी प्रश्नः आनंद की दशा में क्या बस फूल ही फूल हैं, कांटे क्या एक भी नहीं? प्रश्न थोड़ा कठिन है। कठिन इसलिए है कि आनंद के मार्ग पर न तो फल हैं - और न कांटे। कांटे तुम्हारे देखने में होते हैं। फूल भी तुम्हारे देखने में होते हैं। कांटे और फूल बाहर नहीं हैं। कांटे और फूल तुम्हें मिलते नहीं हैं बाहर, तुम्हारे देखने से जन्मते हैं। गलत देखने से कांटे दिखाई पड़ते हैं। ठीक देखने से फल दिखाई पड़ते हैं। तुम वही देख लेते हो जो तुम्हारी दृष्टि है। दृष्टि ही सृष्टि है, इसे स्मरण रखो। ___ बड़ी प्राचीन कथा है कि रामदास राम की कथा कह रहे हैं। कथा इतनी प्रीतिकर है, राम की कहानी इतनी प्रीतिकर है कि हनुमान भी सुनने आने लगे। हनुमान ने तो खुद ही आंखों से देखी थी सारी कहानी। लेकिन फिर भी कहते हैं, रामदास ने ऐसी कही कि हनुमान को भी आना पड़ा। खबर मिली तो वह सुनने आने लगे। बड़ी अदभुत थी। छिपे-छिपे भीड़ में बैठकर सुनते थे। पर एक दिन खड़े हो गए, खयाल ही न रहा कि छिपकर सुनना है, छिपकर ही आना है। क्योंकि रामदास कुछ बात कहे जो हनुमान को जंची नहीं, गलत थी, क्योंकि हनुमान मौजूद थे। और यह आदमी तो हजारों साल बाद कह रहा है। तो उन्होंने कहा कि देखो, इसको सुधार कर लो। रामदास ने कहा कि जब हनुमान लंका गए और अशोक वाटिका में गए. और उन्होंने सीता को वहां बंद देखा, तो वहां चारों तरफ सफेद फूल खिले थे। हनुमान ने कहा, यह बात गलत है, तुम इसमें सुधार कर लो। फूल लाल थे, सफेद नहीं थे। रामदास ने कहा, तुम बैठो, बीच में बोलने की जरूरत नहीं है। तुम हो कौन? फूल सफेद थे। तब तो हनुमान को अपना रूप बताना पड़ा। हनुमान ही हैं! भूल ही गए सब शिष्टाचार। कहा कि मैं खुद हनुमान हूं। प्रगट हो गए। और कहा कि अब तो सुधार करोगे? तुम हजारों साल बाद कहानी कह रहे हो। तुम वहां थे नहीं मौजूद। मैं चश्मदीद गवाह हूं। मैं खुद हनुमान हूं, जिसकी तुम कहानी कह रहे हो। मैंने फूल लाल देखे थे, सुधार कर लो। __ मगर रामदास जिद्दी। रामदास ने कहा, होओगे तुम हनुमान, मगर फूल सफेद थे। इसमें फर्क नहीं हो सकता। बात यहां तक बढ़ गई कि कहते हैं राम के दरबार में दोनों को ले जाया गया, कि अब राम ही निर्णय करें कि अब यह क्या मामला होगा, कैसे बात हल होगी! क्योंकि हनुमान खुद आंखों देखी बात कह रहे हैं कि 101
SR No.002379
Book TitleDhammapada 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages266
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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