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एस धम्मो सनंतनो
क्यों न फिरदौस को दोजख में मिला लें या रब
सैर के वास्ते थोड़ी सी जगह और सही तुम जो हो उसी में तो जोड़ोगे भविष्य को भी। तुम स्वर्ग को भी अपने नर्क में ही जोड़ लोगे। तुम अपने अधर्म में ही धर्म को भी जोड़ लेते हो। तुम अपनी दुकान में ही मंदिर को भी जोड़ लेते हो। तुम अपनी बीमारी में अपने स्वास्थ्य को भी जोड़ लेते हो। तुम अपनी मूर्छा में अमूर्छा की बातों को भी जोड़ लेते हो। तुम अपनी अशांति में अपने ध्यान को भी जोड़ लेते हो। रूपांतरण नहीं हो पाता।
नर्क में स्वर्ग को नहीं जोड़ना है। नर्क को मिटाना है, ताकि स्वर्ग हो सके। नर्क को छोड़ना है, ताकि स्वर्ग हो सके। __ क्षणभंगुर जीवन है, यह सत्य है। इसके तुम तीन अर्थ ले सकते हो। एक, क्षणभंगुर है, इसलिए जल्दी करो। भोगो, कहीं भोग छूट न जाए। सांसारिक आदमी वही कहता है-खाओ, पीओ, मौज करो, जिंदगी जा रही है। फिर धार्मिक आदमी है, वह कहता है-जिंदगी जा रही है, खाओ, पीओ, मौज करो, इसमें मत गंवाओ। कुछ कमाई कर लो, जो आगे काम आए स्वर्ग में, मोक्ष में। ये दोनों गलत हैं। फिर एक तीसरा आदमी है जिसको मैं जागा हुआ पुरुष कहता हूं, बुद्धपुरुष कहता हूं, वह कहता है-जीवन क्षणभंगुर है, इसलिए कल पर तो कुछ भी नहीं छोड़ा जा सकता। स्वर्ग और भविष्य की कल्पनाएं नासमझियां हैं। इसलिए बुद्ध ने स्वर्गों की बात नहीं की। फिर वह यह कहता है कि जीवन क्षणभंगुर है तो सतह पर ही खाने-पीने और मौज में भी उसे गंवाना व्यर्थ है। तो थोड़ा हम भीतर उतरें, क्षण को खोलें, कौन जाने क्षण केवल द्वार हो जिसके बाहर ही हम जीवन को गंवाए दे रहे हैं। क्षण को खोलना ही ध्यान है। ___महावीर ने तो ध्यान को सामायिक कहा। क्योंकि सामायिक का अर्थ है, समय को खोल लेने की कला। क्षण में खोलकर उतर जाना। द्वार तो छोटा ही होता है, महल बहुत बड़ा है। तुम द्वार के कारण महल को छोटा मत समझ लेना। द्वार तो छोटा ही होता है। द्वार के बड़े होने की जरूरत नहीं। तुम निकल जाओ इतना काफी है।
. इतना मैं तुमसे कहता हूं, क्षण का द्वार इतना बड़ा है कि तुम उससे मजे से निकल सकते हो। इससे ज्यादा की जरूरत भी नहीं। क्षण के पार शाश्वत तुम्हारी प्रतीक्षा कर रहा है। तुम एक द्वार से दूसरे द्वार पर भाग रहे हो। कुछ द्वार-द्वार भीख मांगते फिर रहे हैं, वे सांसारिक लोग। कुछ हैं जो उदास होकर बैठ गए हैं द्वार के बाहर, सिर लटका लिया है कि जीवन बेकार है। इन दो से बचना। .
एक तीसरा आदमी भी है, जिसने क्षण की कुंजी खोज ली-वही अमूर्छा है, अप्रमाद है-और क्षण का द्वार खोल लिया। क्षण का द्वार खोलते ही शाश्वत का द्वार खुल जाता है। अनंत छिपा है क्षण में, विराट छिपा है कण में।
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