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अनंत छिपा है क्षण में
सतह पर वह अपने स्वर्ग और नर्कों की भी कामना करता है, अपने आने वाले भविष्य जन्मों की भी कल्पना करता है—यहीं, इसी आयाम में। वह कभी नीचे झांककर नहीं देखता कि सतह की गहराई में कितना अनंत छिपा है।
एक-एक क्षण में अनंत का वास है । और एक-एक कण में विराट है। लेकिन वह कण को कण की तरह देखता है, क्षण को क्षण की तरह देखता है। और क्षण की वजह से — इतना छोटा क्षण जी कैसे पाएंगे - वह आगे की योजनाएं बनाता है
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कि कल जीएंगे और यह भूल ही जाता है, कि कल भी क्षण ही हाथ में होगा । जब भी होगा क्षण ही हाथ में होगा। ज्यादा कभी हाथ में न होगा। जब यह जीवन चूक जाता है, तो अगले जीवन की कल्पना करता है कि फिर जन्म के बाद होगा जीवन | लेकिन तुम वही कल्पना करोगे, उसी की आकांक्षा करोगे जो तुमने जाना है। गालिब की बड़ी प्रसिद्ध पंक्तियां हैं
क्यों न फिरदौस को दोजख में मिला लें या रब सैर के वास्ते थोड़ी सी जगह और सही
गालिब कह रहा है कि नर्क को ही जाना है हमने तो, स्वर्ग को तो जाना नहीं । और जिनको हमने जाना है, उन्होंने भी नर्क को ही जाना है।
क्यों न फिरदौस को दोजख में मिला लें या रब
'तो हम स्वर्ग को भी नर्क में क्यों न मिला लें ?
सैर के वास्ते थोड़ी सी जगह और सही
स्वर्ग होगा भी छोटा नर्क के मुकाबले, क्योंकि अधिक लोग नर्क में जी रहे हैं। स्वर्ग में तो कभी कोई जीता है। इस थोड़ी सी जगह को भी और अलग क्यों छोड़ रखा है।
क्यों न फिरदौस को दोजख में मिला लें या रब सैर के वास्ते थोड़ी सी जगह और सही
इसको क्यों अलग छोड़ रखा है? ये पंक्तियां बड़ी महत्वपूर्ण हैं। ये साधारण आदमी के मन की खबर हैं।
तुम्हें अगर स्वर्ग भी मिले तो तुम उसे अपने नर्क में ही जोड़ लेना चाहोगे, और तुम करोगे भी क्या ? मैंने देखा है, तुम्हें धन भी मिल जाए तो तुम उसे अपनी गरीबी में जोड़ लेते हो, और तुम करोगे भी क्या ? तुम्हें आनंद का अवसर भी मिल जाए तो तुम उसे भी अपने दुख में जोड़ लेते हो, तुम और करोगे भी क्या ? तुम्हें अगर चार दिन जिंदगी के और मिल जाएं तो तुम उन्हें इसी जिंदगी में जोड़ लोगे, और तुम करोगे भी क्या? आदमी सत्तर साल जीता है, सात सौ साल जीए तो तुम सोचते हो कोई क्रांति हो जाएगी ! बस ऐसे ही जीएगा। और सुस्त होकर जीने लगेगा। ऐसे ही जएगा। सत्तर साल में अभी नहीं जीता तो सात सौ साल में तो और भी स्थगित करने लगेगा कि जल्दी क्या है ?
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