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________________ एस धम्मो सनंतनो सांसारिक जीवन का अर्थ है, इस क्षण को अगले क्षण के लिए कुर्बान करो, फिर उसको और अगले के लिए कुर्बान करना। आज को कल के लिए निछावर करो, कल को फिर और परसों के लिए निछावर करना। सांसारिक जीवन एक सतत स्थगन, एक पोसपोनमेंट है। संन्यास का जीवन, इस क्षण को पूरा जी लो परम अनुग्रह के भाव से। परमात्मा ने यह क्षण दिया, इसे पूरा पी लो। इस क्षण की प्याली में से एक बूंद भी अनपीयी न छूट जाए, तुम इसे पूरा ही गटक जाओ, तो तुम तैयार हो रहे हो दूसरे क्षण को पीने के लिए। जितना तुम पीयोगे उतनी तैयारी हो जाएगी। यह प्यास कुछ ऐसी है कि पीने से बढ़ती है। यह रस कुछ ऐसा है कि जितना तुम इसमें डूबोगे उतनी ही डूबने की क्षमता आती जाएगी। क्षणभंगुरता का बोध अगर तुम्हें आ जाए कि एक ही क्षण पास है, दूसरा कोई. क्षण पास नहीं हो सकता है यही क्षण आखिरी हो तो फिर तुम कल पर न छोड़ सकोगे। तुम आज जीओगे, यहीं जीओगे। तुम यह न कहोगे कि कल पर छोड़ते हैं, कल जी लेंगे। कल कर लेंगे प्रेम, कल कर लेंगे उत्सव, कल कर लेंगे आनंद, तुममें फिर यह सुविधा न रहेगी। आज ही है उत्सव, आज ही है पूजा, आज ही है प्रेम। आज के पार कुछ भी नहीं है। क्षणभंगुर का अगर इतना स्पष्ट बोध हो जाए कि जीवन क्षण-क्षण बीता जा रहा है, चूका जा रहा है, तो तुम क्षण की शाश्वतता में उतरने में समर्थ हो जाओगे। एक क्षण भी अपनी गहराई में सनातन है, शाश्वत है। ऐसे समझो कि एक आदमी किसी झील में तैरता है—ऊपर-ऊपर, एक लहर से दूसरी लहर। और एक दूसरा है गोताखोर, जो झील में एक ही लहर में गोता मारता है और गहरे उतर जाता है। सांसारिक आदमी एक लहर से दूसरी लहर पर चलता रहता है। सतह पर ही तैरता है। सतह पर सतह ही हाथ लगती है। गहराई में जो जाता है उसे गहराई के खजाने हाथ लगते हैं। किसी ने कभी लहरों पर मोती पाए ? मोती गहराई में हैं। जीवन का असली अर्थ क्षण की गहराई में छिपा है। तो यह तो ठीक है कि जीवन को क्षणभंगुर मानो-है ही; मानने का सवाल नहीं है, जानो। यह भी ठीक है कि एक क्षण से ज्यादा तुम्हें कुछ मिला नहीं। लेकिन इससे उदास होकर मत बैठ जाना। यह तो कहा ही इसलिए था ताकि झूठी दौड़ बंद हो जाए। यह तो कहा ही इसलिए था ताकि गलत आयाम में तुम न चलो। यह तो तुम्हें पुकारने को कहा था कि गहराई में उतर आओ। बुद्ध जब कहते हैं, जीवन क्षणभंगुर है, तो वे यह नहीं कह रहे हैं कि इसे छोड़कर तुम उदास होकर बैठ जाओ। वे यही कह रहे हैं कि तुम्हारे होने का जो ढंग है अब तक, वह गलत है। उसे छोड़ दो, मैं तुम्हें एक और नए होने का ढंग बताता हूं। साधारण आदमी तो क्षणभंगुर जीवन की सतह पर जीता है। इसी क्षणभंगुर 98
SR No.002379
Book TitleDhammapada 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages266
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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