________________
एस धम्मो सनंतनो है। इतनी सी रोशनी से कहीं जाना हो सकता है? घबड़ा गया। हिसाब बहुतों को घबड़ा देता है।
अगर तुम परमात्मा का हिसाब लगाओगे, घबड़ा जाओगे। कितना फासला है! कहां तुम, कहां परमात्मा! कहां तुम, कहां मोक्ष! कहां तुम्हारा कारागृह और कहां मुक्ति का आकाश! बहुत दूर है। तुम घबड़ा जाओगे, पैर कंप जाएंगे। बैठ जाओगे, आश्वासन खो जाएगा, भरोसा टूट जाएगा। पहुंच सकते हो, यह बात ही मन में समाएगी न।
उसके पैर डगमगा गए। वह बैठ गया। कभी गया न था, कभी चला न था, यात्रा न की थी। सिर्फ लोगों को देखा था आते-जाते। उनकी नकल कर रहा था, तो लालटेन भी ले आया था, सामान भी ले आया था। कहते हैं, पास से फिर एक यात्री गुजरा और उसने पूछा कि तुम यहां क्या कर रहे हो? उस आदमी ने कहा, मैं बड़ी मुसीबत में हूं। इतनी सी रोशनी से इतने दूर का रास्ता! पंद्रह मील का अंधकार, चार कदम पड़ने वाली रोशनी! हिसाब तो करो! उस आदमी ने कहा, हिसाब-किताब की जरूरत नहीं। उठो और चलो। मैं कोई गणित नहीं जानता, लेकिन इस रास्ते पर बहुत बार आया-गया हूं। और तुम्हारी लालटेन तो मेरी लालटेन से बड़ी है। तुम मेरी लालटेन देखो वह बहुत छोटी सी लालटेन लिए हुए था, जिससे एक कदम मुश्किल से रोशनी पड़ती थी-इससे भी यात्रा हो जाती है। क्योंकि जब तुम एक कदम चल लेते हो, तो आगे एक कदम फिर रोशन हो जाता है। फिर एक कदम चल लेते हो, फिर एक कदम रोशन हो जाता है।
जिनको चलना है, हिसाब उनके लिए नहीं है। जिनको नहीं चलना है, हिसाब उनकी तरकीब है। जिनको चलना है, वे चल पड़ते हैं। छोटी सी रोशनी पहुंचा देती है। जिनको नहीं चलना है, वे बड़े अंधकार का हिसाब लगाते हैं। वह अंधकार घबड़ा देता है। पैर डगमगा जाते हैं।
साधक बनो, ज्ञानी नहीं। साधक बिना बने जो ज्ञान आ जाता है, वह कूड़ा-करकट है। साधक बनकर जो आता है, वह बात ही और है। महावीर ठीक कहते हैं, जो चल पड़ा वह पहुंच गया; वह ज्ञानी की बात है। उस ज्ञानी की जो चला है, पहुंचा है। __महावीर के पास उनका खुद का दामाद उनका शिष्य हो गया था। लेकिन उसे बड़ी अड़चन होती थी। भारत में तो दामाद का ससुर पैर छूता है। तो महावीर को पैर छूना चाहिए दामाद का। मगर जब उसने दीक्षा ले ली और उनका शिष्य हो गया, तो उसको पैर छूना पड़ता था। तो उसे बड़ी पीड़ा होती थी। बड़ा अहंकारी राजपूत था।
और फिर महावीर की बातों में उसे कई ऐसी बातें दिखाई पड़ने लगीं जो असंगत हैं। यह बात उनमें एक बात थी। तो उसने एक विरोध का झंडा खड़ा कर दिया। उसने महावीर के पांच सौ शिष्यों को भड़का लिया। और उसने कहा, यह तो बकवास है
94