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अनंत छिपा है क्षण में
मैं तुमसे कहता हूं, अगर यात्रा से बचना हो तो नक्शों को पकड़ रखना बहुत जरूरी है। क्योंकि मन उलझा रहता है नक्शों में। और नक्शे बहुत प्रकार के हैं, नाना रंग-रूप के हैं।
बुद्ध ने क्या कहा है इसकी फिक्र मत करो। महावीर ने क्या कहा है इसकी चिंता मत करो। कृष्ण ने क्या कहा है इसका हिसाब मत रखो। बुद्ध क्या हैं, महावीर क्या हैं, कृष्ण क्या हैं - उनके होने पर थोड़ी नजर लाओ और तुम भी होने में लग जाओ ये सब बाल की खाल हैं कि कौन सी विधि है और कौन सा पहुंचना; कौन सा मार्ग, कौन सी मंजिल | बाल की खाल मत निकालो। बहुत तर्कशास्त्री हैं। उनको तुम छोड़ दे सकते हो। और एक बात ध्यान रखना, अंत में तुम पाओगे कि जो चले वे पहुंच गए और जो सोचते रहे वे खो गए। साधक एक कदम की चिंता करता है। एक कदम चल लेता है फिर दूसरे की चिंता करता है ।
चीन में कहानी है कि एक आदमी वर्षों तक सोचता था कि पास में एक पहाड़ पर तीर्थस्थान था वहां जाना है। लेकिन — कोई तीन - चार घंटे की यात्रा थी, दस-पंद्रह मील का फासला था - वर्षों तक सोचता रहा। पास ही था, नीचे घाटी में ही रहता था, हजारों यात्री वहां से गुजरते थे, लेकिन वह सोचता था पास ही तो हूं, कभी भी चला जाऊंगा।
बूढ़ा हो गया। तब एक दिन एक यात्री ने उससे पूछा कि भाई, तुम भी कभी गए हो? उसने कहा कि मैं सोचता ही रहा, सोचा इतना पास हूं, कभी भी चला जाऊंगा। लेकिन अब देर हो गई, अब मुझे जाना ही चाहिए। उठा, उसने दुकान बंद की। सांझ हो रही थी। पत्नी ने पूछा, कहां जाते हो ? उसने कहा मैं, अब तो यह मरने का वक्त आ गया, और मैं यही सोचता रहा इतने पास है, कभी भी चला जाऊंगा, और मैं इन यात्रियों को ही जो तीर्थयात्रा पर जाते हैं सौदा - सामान बेचता रहा। जिंदगी मेरी यात्रियों के ही साथ बीती - आने-जाने वालों के साथ। वे खबरें लाते, मंदिर के शिखरों की चर्चा करते, शांति की चर्चा करते, पहाड़ के सौंदर्य की बात करते, और मैं सोचता कि कभी भी चला जाऊंगा, पास ही तो है । दूर-दूर के लोग यात्रा कर गए, मैं पास रहा रह गया। मैं जाता हूं।
कभी यात्रा पर गया न था । सिर्फ यात्रा की बातें सुनी थीं। सामान बांधा, तैयारी की रातभर — पता था कि तीन बजे रात निकल जाना चाहिए, ताकि सुबह - सुबह ठंडे-ठंडे पहुंच जाए। लालटेन जलाई। क्योंकि देखा था कि यात्री बोरिया-बिस्तर भी रखते हैं, लालटेन भी लेकर जाते हैं। लालटेन लेकर गांव के बाहर पहुंचा तब उसे एक बात खयाल आई कि लालटेन का प्रकाश तो चार कदम से ज्यादा पड़ता नहीं। पंद्रह मील का फासला है। चार कदम तक पड़ने वाली रोशनी साथ है। यह पंद्रह मील की यात्रा कैसे पूरी होगी ? घबड़ाकर बैठ गया । हिसाब लगाया। दुकानदार था, हिसाब-किताब जानता था। चार कदम पड़ती है रोशनी, पंद्रह मील का फासला
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