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एस धम्मो सनंतनो
मैं
साधक झुकता है। झुकने का अर्थ है, निर्णय छोड़ता है। साधक कहता है, कौन हूं, मैं कैसे जान पाऊंगा, मेरी हैसियत क्या ? मेरी सामर्थ्य क्या ? साधक कहता है कि मैं कुछ हूं नहीं। इस न होने के बोध में से झुकने का फूल खिलता है। इस न होने में से समर्पण आता है। इस न होने में से झुकना आ जाता है। ऐसा कहना ठीक नहीं कि साधक झुकता है । ऐसा कहना ज्यादा ठीक है कि साधक पाता है कि झुकना हो रहा है। देखता है तो पाता है, अकड़ की कोई जगह तो नहीं, कोई सुविधा नहीं, अकड़ का कोई उपाय नहीं । अकड़ का उपाय नहीं पाता, इसलिए झुकना घटने लगता है। तुम अगर झुकते भी हो, तो तुम्हीं झुकते हो। तुम्हीं झुके तो क्या खाक झुके। अगर झुकने में भी तुम रहे, तो झुकना न हुआ।
बेखुदी में हम तो तेरा दर समझकर झुक गए
अब खुदा मालूम वह काबा था या बुतखाना था
मार्ग और मंजिल एक हैं कि अलग-अलग, खुदा मालूम। तुम चलो। और जिस बहाने से चल सको उसी बहाने को मान लो । सब बहाने बराबर हैं । इसीलिए तो मैं सभी धर्मों की चर्चा करता हूं। कोई धर्म किसी से कम-ज्यादा नहीं है । सब बहाने हैं। खूंटियां हैं मकान में, किसी पर भी टांग दो अपने कपड़े। कृपा करो, टांगो । खूंटियों का बहुत हिसाब मत रखो कि लाल पर टांगेंगे, कि हरी पर टांगेंगे। हरी होगी इस्लाम की खूंटी, लाल होगी हिंदुओं की खूंटी । तुम टांगो। क्योंकि धार्मिक को टांगने से मतलब है, खूंटियों से मतलब नहीं।
अब खुदा मालूम वो काबा था या बुतखाना था
ये तुम परमात्मा पर छोड़ दो। ये सब बड़े हिसाब उसी पर छोड़ दो। तुम तो एक छोटा सा काम कर लो, तुम चलो। लेकिन लोग बड़े हिसाब में लगे हैं, बड़ी चिंतना करते हैं, बड़ा विचार करते हैं। बड़ी होशियारी में लगे हैं, कि जब सब तय हो जाएगा बौद्धिक रूप से, और हम पूरी तरह से आश्वस्त हो जाएंगे, तब ।
तो तुम कभी न चलोगे। तुम जिंदगीभर जिंदगी का सपना देखोगे। तुम जिंदगी भर जीने का विचार करोगे, जी न पाओगे। तैयारी करोगे, लेकिन कभी तुम जान पाओगे यात्रा पर। बोरिया-बिस्तर बांधोगे, खोलोगे, बांधोगे, खोलोगे; रेल्वे स्टेशन पर जाकर ट्रेन कब, कहां जाती है उसका पता लगाओगे; टाइम-टेबल का अध्ययन करोगे – तुम्हारे वेद, तुम्हारे कुरान टाइम-टेबल हैं, ज्यादा कुछ भी नहीं - उनका बैठकर तुम अध्ययन करते रहो, टाइम-टेबल से कहीं कोई यात्रा हुई है! कुछ लोगों को मैं देखता था, जब मैं सफर में होता था, वे बैठे हैं अपने टाइम-टेबल का ही अध्ययन कर रहे हैं। वेदपाठी कहना चाहिए। ज्ञानी, पंडित टाइम-टेबल का अध्ययन कर रहे हैं । उसी को उलट रहे हैं।
नक्शों को रखे बैठे रहोगे। नक्शों से कभी किसी ने यात्रा की है ? मैं तुमसे कहता हूं, अगर यात्रा पर न जाना हो तो नक्शे का अध्ययन करना बहुत जरूरी है।
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