________________
अनंत छिपा है क्षण में
I
एक बात पर ही मेरा जोर है कि तुम बैठे मत रहो । क्योंकि विचार करने की एक हानि है कि विचारक सिर पर हाथ लगाकर बैठ जाता है, सोचने लगता है। कुछ करो। करने से रास्ता तय होगा, चलने से ।
कई बार मैं देखता हूं, बहुत लोगों को, वे विचार ही करते रहते हैं । समय खोता जाता है। कभी-कभी बूढ़े लोग मेरे पास आ जाते हैं, वे अभी भी विचार कर रहे हैं कि ईश्वर ने दुनिया बनाई या नहीं ! तुम अब कब तक यह विचार करते रहोगे ? बनाई होतो, न बनाई हो तो। जीवन को जानने के लिए कुछ करो। ईश्वर हो तो, न हो तो । तुम होने के लिए - स्वयं होने के लिए — कुछ करो। ये सारी चिंताएं, ये सारी समस्याएं अर्थहीन हैं। कितनी ही सार्थक मालूम पड़ें, सार्थक नहीं हैं। और कितनी ही बुद्धिमानीपूर्ण मालूम पड़ें, बुद्धिमानीपूर्ण नहीं हैं।
बेखुदी में हम तो तेरा दर समझकर झुक गए
अब खुदा मालूम वह काबा था या बुतखाना था
वह मंदिर था या मस्जिद थी, यह परमात्मा पर ही छोड़ देते हैं। हम तो झुक गए। बेखुदी में हम तो तेरा दर समझकर झुक गए
हमने तो अपनी विनम्रता में, अपने निरअहंकार में सिर झुका दिया।
अब खुदा मालूम वह काबा था या बुतखाना था
अब यह खुदा सोच ले कि मस्जिद थी, कि मंदिर था, कि काशी थी, कि काबा था। यह चिंता साधक की नहीं है, यह चिंता पंडित की है कि कहां झुके ?
जरा फर्क समझना, बारीक है और नाजुक है। समझ में आ जाए तो बड़ा क्रांतिकारी है।
पंडित पूछता है, कहां झुके ? साधक पूछता है, झुके ? पंडित का जोर है, कहां ? पंडित पूछता है, किस चीज के सामने झुके ? काबा था कि काशी ? कौन था जिसके सामने झुके? साधक पूछता है, झुके ? साधक की चिंता यही है, झुकाव आया ? नम्रता आई? झुकने की कला आई ? इससे क्या फर्क पड़ता है वहां झुके ! झुक गए। जो झुक गया उसने पा लिया। इससे कोई भी संबंध नहीं कि वह कहां झुका। मस्जिद में झुका तो पा लिया, मंदिर में झुका तो पा लिया। झुकने से पाया। मंदिर से नहीं पाया, मस्जिद से नहीं पाया। मंदिर-मस्जिदों से कहीं कोई पाता है ! झुकने से पाता है।
और जो सोचकर झुका कि कहां झुक रहा हूं, वह झुका ही नहीं । कहीं कोई सोचकर झुका है! सोच-विचार करके तो कोई झुकता ही नहीं, झुकने से बचता है। अगर तुम बिलकुल निर्णय करके झुके कि हां, यह परमात्मा है, अब झुकना है— सब तरह से तय कर लिया कि यह परमात्मा है, फिर झुके – तो तुम झुके नहीं। क्योंकि तुम्हारा निर्णय और तुम्हारा झुकना । तुम अपने ही निर्णय के सामने झुके । तुम परमात्मा के सामने न झुके, तुम अपने निर्णय के सामने झुके ।
-
91