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________________ एस धम्मो सनंतनो जो तर्कनिष्ठ हैं, उन्हें यही मानना उचित होगा। क्योंकि तर्क कहता है, मंजिल और मार्ग अलग-अलग। जो तर्क की बहुत चिंता नहीं करते, और जो जीवन को बिना तर्क के देखने में समर्थ हैं—वैसी सामर्थ्य बहुत कम लोगों में होती है लेकिन अगर हो तो उनको दिखाई पड़ेगा कि मार्ग और मंजिल एक ही हैं। क्योंकि मार्ग तभी पहुंचा सकता है मंजिल तक जब मंजिल से जुड़ा हो। नहीं तो पहुंचाएगा कैसे? अगर अलग-अलग हों तो पहुंचाएगा कैसे? तब तो दोनों के बीच फासला होगा। छलांग न लग सकेगी। दूरी होगी। वही मार्ग पहुंचा सकता है जो मंजिल से जुड़ा हो। और अगर जुड़ा ही है तो फिर क्या फर्क करना। कहां तय करोगे कि कहां मार्ग समाप्त हुआ, कहां मंजिल शुरू हुई? इसलिए महावीर का बड़ा अदभुत वचन है कि जो चल पड़ा वह पहुंच ही गया। जरूरी नहीं है। तुम जैसे चलने वाले हों तो बीच में ही बैठ जाएंगे कि लो, महावीर को गलत सिद्ध किए देते हैं। लेकिन महावीर के कहने में बड़ा सार है—जो चल पड़ा वह पहुंच ही गया। क्योंकि जब तुम चले, पहला कदम भी उठाया, तो पहला कदम भी तो मंजिल को ही छू रहा है। कितनी ही दूर हो, लेकिन एक कदम कम हो गई, पास आ गई। ___ लाओत्सू ने कहा है, एक-एक कदम चलकर हजारों मील की यात्रा पूरी हो जाती है। तो ऐसा थोड़े ही है कि यात्रा तभी पूरी होती है जब पूरी होती है। जब तुम चले तब भी पूरी होनी शुरू हो जाती है। इंच-इंच चलते हो, कदम-कदम चलते हो, बूंद-बूंद चलते हो। सागर चुक जाता है एक-एक बूंद से। __ तुम्हारे ऊपर निर्भर है। अगर बहुत तर्कनिष्ठ मन है और तुम ऐसा मानना चाहो कि मार्ग अलग, मंजिल अलग, ऐसा मान लो। अगर दृष्टि और साफ-सुथरी है, तर्क के ऊपर देख सकते हो और विरोधाभास से कोई अड़चन नहीं आती, तो मार्ग ही मंजिल है, ऐसा मान लो। दोनों बातें सही हैं। क्योंकि दोनों बातें एक ही सत्य को देखने के दो ढंग हैं। मार्ग अलग है मंजिल से, क्योंकि मार्ग पहुंचाएगा और मंजिल वह है जब तुम पहुंच गए। मार्ग वह है जब तुम चलोगे, मंजिल वह है जब तुम पहुंच गए और चलने की कोई जरूरत न रही—अलग-अलग हैं। दोनों एक भी हैं। क्योंकि पहला कदम पड़ा कि मंजिल पास आने लगी। मार्ग छुआ नहीं कि मंजिल भी छू ली—कितनी ही दूर सही! किरण को जब तुम छूते हो, सूरज को भी छू लिया, क्योंकि किरण सूरज का ही फैला हुआ हाथ है। तुमने मेरे हाथ को छुआ तो मुझे छुआ या नहीं? हाथ मेरा दो फीट लंबा है कि दो हजार फीट लंबा है, इससे क्या फर्क पड़ता है ? कि दस करोड़ मील लंबा है, इससे क्या फर्क पड़ता है? किरण सूरज का हाथ है। किरण को छू लिया, सूरज को छू लिया। यात्रा शुरू हो गई। 90
SR No.002379
Book TitleDhammapada 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages266
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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