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अनंत छिपा है क्षण में
मैं बात कर रहा हूं वह किसी और ही दूसरे जगत का हीरा है। उसके लिए तुम्हें तैयार होना होगा। तुम जैसे हो वैसे ही वह नहीं घटेगा। तुम्हें अपने को बड़ा परिष्कार करना होगा। तुम्हें अपने को बड़ा साधना होगा। तब कहीं वह स्वर तुम्हारे भीतर पैदा हो सकता है। ___ लेकिन प्रत्येक व्यक्ति को जिंदगी में एक नशे का दौर होता है। कामवासना का दौर होता है। तब काम ही राम मालूम पड़ता है। जिस दिन यह बोध बदलता है और काम काम दिखाई पड़ता है, उसी दिन तुम्हारी जिंदगी में पहली दफे राम की खोज शुरू होती है। ___ तो धन्यभागी हैं वे, जिन्होंने जान लिया कि यह प्रेम व्यर्थ है। धन्यभागी हैं वे, जिन्होंने जान लिया कि यह अहोभाव केवल मन की आकांक्षा थी, कहीं है नहीं। कहीं बाहर नहीं था, सपना था देखा। जिनके सपने टूट गए, आशाएं टूट गयीं, धन्यभागी हैं वे। क्योंकि उनके जीवन में एक नई खोज शुरू होती है। उस खोज के मार्ग पर ही कभी तुम्हें प्रेम मिलेगा। प्रेम परमात्मा का ही दूसरा नाम है। इससे कम प्रेम की परिभाषा नहीं।
तीसरा प्रश्न :
क्या प्रयास व साधना विधि है और तथाता मंजिल है? या तथाता ही विधि और मंजिल दोनों है?
इतने हिसाब में क्यों पड़ते हो? यह हिसाब कहां ले जाएगा? हिसाब ही
करते रहोगे या चलोगे भी? क्या मंजिल है, क्या मार्ग है, इसको सोचते ही रहोगे? • तो एक बात पक्की है, कितना ही सोचो, सोचने से कोई मार्ग तय नहीं होता,
और न सोचने से कोई मंजिल करीब आती है। सोचने-विचारने वाला धीरे-धीरे चलने में असमर्थ ही हो जाता है। चलना तो चलने से आता है, होना होने से आता है।
नामों की चिंता में बहुत मत पड़ो। दोनों बातें कही जा सकती हैं। प्रेम ही मार्ग है, प्रेम ही मंजिल है। यह भी कहा जा सकता है कि प्रेम मार्ग है, परमात्मा मंजिल है। पर कोई फर्क नहीं है इन बातों में। जिस तरह से तुम्हारा मन चलने को राजी हो उसी तरह मान लो। क्योंकि मेरी फिकर इतनी है कि तुम चलो। तुम्हें अगर इसमें ही सकून मिलता है, शांति मिलती है कि प्रेम मार्ग, परमात्मा मंजिल है; योग मार्ग, मोक्ष मंजिल है; प्रयास, विधि मार्ग, तथाता मंजिल है; ऐसा समझ लो, कोई अड़चन नहीं है। मगर कृपा करके चलो।
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