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एस धम्मो सनंतनो
भीतर जाओ, अपने को जानो। आत्मज्ञान से ही तुम्हें पता चलेगा मैं और तू झूठी बोतलें थे, जो दिखाई पड़ रहे थे। नजर साफ न थी, अंधेरा था, धुंधलका था, बीमारी थी-एक के दो दिखाई पड़ रहे थे। भ्रम था। भीतर उतरकर तुम पाओगे, जिसको तुमने अब तक दूसरा जाना था वह भी तुम्ही हो। दूसरे को जब तुम छूते हो, तब तुम अपने ही कान को जरा हाथ घुमाकर छूते हो, बस। वह तुम्हीं हो। जरा चक्कर लगाकर छूते हो। जिस दिन यह दिखाई पड़ेगा, उस दिन प्रेम। उसके पहले जिसे तुम प्रेम कहते हो, कृपा करके उसे प्रेम मत कहो।
प्रेम शब्द बड़ा बहुमूल्य है। उसे खराब मत करो। प्रेम शब्द बड़ा पवित्र है। उसे अज्ञान का हिस्सा मत बनाओ। उसे अंधकार से मत भरो। प्रेम शब्द बड़ा रोशन है। वह अंधेरे में जलती एक शमा है। प्रेम शब्द एक मंदिर है। जब तक तुम्हें मंदिर में . जाना न आ जाए तब तक हर किसी जगह को मंदिर मत कहना। क्योंकि अगर हर किसी जगह को मंदिर कहा, तो धीरे-धीरे मंदिर को तुम पहचानना ही भूल जाओगे। और तब मंदिर को भी तुम हर कोई जगह समझ लोगे।
जिसे तुम अभी प्रेम कहते वह केवल कामवासना है। उसमें तुम्हारा कुछ भी नहीं है। शरीर के हारमोन काम कर रहे हैं, तुम्हारा कुछ भी नहीं है। स्त्री के शरीर से कुछ हारमोन निकाल लो, पुरुष की इच्छा समाप्त हो जाती है। पुरुष के शरीर से कुछ हारमोन निकाल लो, स्त्री की आकांक्षा समाप्त हो जाती है। तुम्हारा इसमें क्या लेना-देना है? केमिस्ट्री है। थोड़ा रसायनशास्त्र है। अगर ज्यादा हारमोन डाल दिए जाएं पुरुष के शरीर में, तो वह दीवाना हो जाता है, पागल हो जाता है एकदम। मजनू के शरीर में थोड़े ज्यादा हारमोन रहे होंगे, और कुछ मामला नहीं है। जिसको तुम प्रेम की दीवानगी कहते हो, वह रसायनशास्त्र से ठीक की जा सकती है। और जिसको तुम प्रेम की सुस्ती कहते हो, वह इंजेक्शन से बढ़ाई जा सकती है और तुममें त्वरा आ सकती है और तुम पागल हो सकते हो।
इसे तुम प्रेम मत कहना, यह सिर्फ कामवासना है। और इसमें तुम जो प्रेम, और अहोभाव, और आनंद की बातें कर रहे हो, जरा होश से करना, नहीं तो इन्हीं बातों के कारण बहुत दुख पाओगे। क्योंकि जब कोई स्वर भीतर से आता न मालूम पड़ेगा अहोभाव का, तो फिर बड़ा फ्रस्ट्रेशन, बड़ा विषाद होता है। वह विषाद कामवासना के कारण नहीं होता, वह तुम्हारी जो अपेक्षा थी उसी के कारण होता है, कामवासना का क्या कसूर है? हाथ में एक पैसा लिए बैठे थे और रुपया समझा था, जब हाथ खोला, और मुट्ठी खोली तो पाया कि पैसा है। तो पैसा थोड़े ही तुम्हें कष्ट दे रहा है। पैसा तो तब भी पैसा था। पहले भी पैसा था, अब भी पैसा है, पैसा पैसा है। तुमने रुपया समझा था, तो तुम पीड़ित होते हो, तुम दुखी होते हो, तुम रोते-चिल्लाते हो कि यह धोखा हो गया।
तुमने जिसे प्रेम समझा है वह पैसा भी नहीं है, कंकड़-पत्थर है। जिस प्रेम की