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________________ अनंत छिपा है क्षण में सुलगती आग दहकता खयाल तपता बदन कहां पर छोड़ गया कारवां बहारों का वह जिसको वसंत समझा था, बहार समझी थी, वह कहां छोड़ गई? सुलगती आग दहकता खयाल तपता बदन एक रुग्ण दशा। एक बुखार। सब धूल-धूल। सब इंद्रधनुष टूटे हुए। सब सपनों के भवन गिर गए। और एक सुलगती आग, कि जीवन हाथ से व्यर्थ ही गया। लेकिन जब तुम सपनों में खोए हो, तब बड़ा मुश्किल है यह बताना कि यह सपना है। उसके लिए जागना जरूरी है। प्रेम अर्जित किया जाता है। और जिसने प्रार्थना नहीं की, वह कभी प्रेम नहीं कर पाया। इसलिए प्रार्थना को मैं प्रेम की पहली शर्त बनाता है। जिसने ध्यान नहीं किया.. वह कभी प्रेम नहीं कर पाता। क्योंकि जो अपने में नहीं गया, वह दूसरे में तो जा ही.. नहीं सकता। और जो अपने में गया, वह दूसरे में पहुंच ही गया। क्योंकि अपने में जाकर पता चलता है, दूसरा है ही नहीं। दूसरे का खयाल ही अज्ञान का खयाल है। ___ मैंने सुना है, मुल्ला नसरुद्दीन अपने एक मित्र के साथ बैठा था। और उसने अपने बेटे को कहा कि जा और तलघरे से शराब की बोतल ले आ। वह बेटा गया, वह वापस लौटकर आया। उस बेटे को थोड़ा कम दिखाई पड़ता है। और उसकी आंखों में एक तरह की बीमारी है कि एक चीज दो दिखाई पड़ती है। उसने लौटकर कहा कि दोनों बोतल ले आऊं या एक लाऊं? नसरुद्दीन थोड़ा परेशान हुआ, क्योंकि बोतल तो एक ही है। अब अगर मेहमान के सामने कहे एक ही ले आओ, तो मेहमान कहेगा यह भी क्या कंजूसी! अगर कहे दो ही ले आओ, तो यह दो लाएगा कहां से? वहां एक ही है। और मेहमान के सामने अगर यह कहे कि इस बेटे को एक चीज दो दिखाई पड़ती है तो नाहक की बदनामी होगी। फिर इसकी शादी भी करनी है। तो उसने कहा, ऐसा कर, एक तू ले आ और एक को फोड़ आ-बाएं तरफ की फोड़ देना, दाएं तरफ की ले आना, क्योंकि बाएं तरफ की बेकार है। ऐसा उसने रास्ता निकाला। बेटा गया। उसने बाएं तरफ की फोड़ दी, लेकिन दाएं तरफ कुछ था थोड़े ही! एक ही बोतल थी, वह फूट गई। बाएं तरफ और दाएं तरफ ऐसी कोई दो बोतलें थोड़े ही थीं। बोतल एक ही थी। दो दिखाई पड़ती थीं। वह बोतल फूट गई, शराब बह गई, वह बड़ा परेशान हुआ। उसने लौटकर कहा कि बड़ी भूल हो गई, वह बोतल एक ही थी, वह तो फूट गई। मैं तुमसे कहता हूं, जहां तुम्हें दो दिखाई पड़ रहे हैं, वहां एक ही है। तुम्हें दो दिखाई पड़ रहे हैं, क्योंकि तुमने अभी एक को देखने की कला नहीं सीखी। प्रेम है एक को देखने की कला। लेकिन उस कला में उतरना हो तो पहले अपने ही भीतर की सीढ़ियों पर उतरना होगा। क्योंकि वही तुम्हारे निकट है। 87
SR No.002379
Book TitleDhammapada 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages266
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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