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एस धम्मो सनंतनो
लेना हुआ। ___मैंने कहा, मुझे देख लो, मुझे समझ लो, मुझे दो। फिर शेष मुझ पर छोड़ दो। फिर मैं जो करूंगा करूंगा। उसके संबंध में कोई बात फिर न उठेगी।
पात्र अपात्र की क्या चिंता करनी? फूल खिलता है तो इसकी थोड़े ही फिकर करता है कि कोई पास से आ रहा है वह सुगंध का ज्ञाता है, कि अमीर है या गरीब है, कि सौंदर्य का उपासक है या नहीं। फूल इसकी थोड़े ही फिकर करता है। फूल खिलता है तो सुगंध को लुटा देता है हवाओं में। राह से कोई न भी गुजरता हो, निर्जन हो राह, तो भी लुटा देता है। जब बादल भरते हैं तो इसकी थोड़े ही फिकर करते हैं, कहां बरस रहे हैं! भराव से बरसते हैं। इतना ज्यादा है कि बरसना ही पड़ेगा। तो पहाड़ पर भी बरस जाते हैं, जहां पानी की कोई जरूरत नहीं। झीलों पर भी बरसते हैं, जहां पानी भरा ही हुआ है। यह थोड़े ही सवाल है कि कहां बरसना? बरसना।
__ अगर तुम जीवन को देखोगे तो बेशर्त पाओगे। वहां उत्सव बेशर्त है। वहां नाच अहर्निश चल रहा है। किसी के लिए चल रहा है, ऐसा भी नहीं है। ज्यादा है। परमात्मा इतना अतिशय है, इतना अतिरेक से है कि क्या करे अगर न लुटे, न बरसे?
जब तुम्हारे जीवन में शक्ति का आविर्भाव मालूम हो, जब तुम्हें लगे कि बादल भर गया-मेघ भरपूर है, जब तुम्हें लगे कि शक्ति तुम्हारे भीतर उठी है, तो समस्या बनेगी। नाचना, गाना। पागल की तरह उत्सव मनाना। शक्ति विलीन हो जाएगी।
और ऐसा नहीं है कि तुम पीछे शक्तिहीन हो जाओगे। शक्ति को बांटकर ही कोई वस्तुतः शक्तिशाली होता है। क्योंकि तब उसे पता चलता है, झरने अनंत हैं। जितना बांटो उतना बढ़ता जाता है।
__ मोहतसिब तस्बीह के दानों पे ये गिनता रहा
ध्यान रखना, रसाध्यक्ष बैठा है। माला फेर रहा है। वह माला के दानों पर गिन रहा है
किनने पी किनने न पी किन-किन के आगे जाम था और एक ही पाप है जीवन में, और वह पाप है बिना उत्सव के विदा हो जाना। बिना नाचे, बिना गीत गाए विदा हो जाना। तुम्हारा गीत अगर अनगाया रह गया, तुम्हारा बीज अगर अनफूटा रह गया, तुम जो लेकर आए थे वह गंध कभी दसों दिशाओं में न फैली, तो परमात्मा तुमसे जरूर पूछेगा।
इसलिए जब शक्ति उठती है, तो सवाल उठता है कि अब क्या करें? हिसाब मत लगाओ। बेहिसाब लुटाओ। सभी पात्र हैं, क्योंकि सभी पात्रों में वही छिपा है। हर आंख से वही देखेगा नाच, और हर कान से वही. सुनेगा गीत। हर नासारंध्र से सुवास उसी को मिलेगी।
एक बौद्ध साध्वी थी। उसके पास सोने की छोटी सी बुद्ध की प्रतिमा थी। स्वर्ण की। वह इतना उसे प्रेम करती थी, और जैसे कि साधारणतः कृपण मन होता है कि
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