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________________ एस धम्मो सनंतनो नास्तिक भी जिनको तुम कहते हो, वे भी आस्था ही रखते हैं, झूठी। वे भी आस्तिक ही हैं। विपरीत खड़े होंगे, पीठ किए होंगे, लेकिन उनकी भी श्रद्धा कहीं है। पर वह श्रद्धा भी बस थोथी है। अनुभव के अतिरिक्त आधार कहीं और है नहीं। तो बुद्ध ने कहा, अनुभव पर रखो आधार। तत्व-चर्चा मत छेड़ो। जब कि तत्व को जानने का उपाय है तो व्यर्थ की बकवास क्यों? जब हम जान सकते हैं, आंख हमारे पास है, आंख खुलते ही सूरज के दर्शन हो जाएंगे, तो आंख बंद किए सूरज के संबंध में चर्चा क्यों? और आंख बंद रहे तो सूरज के संबंध में लाखं चर्चा चले, सदा लगता ही रहेगा । झूठी खबर किसी की उड़ायी हुई सी है आंख खुले तो सूरज सत्य है। फिर सारी दुनिया भी कहती हो कि सूरज नहीं है, तो भी अंतर नहीं पड़ता। सत्य अनुभव में आ जाए तो स्वयंसिद्ध है। फिर सारी दुनिया इनकार कर दे, तो भी कोई अंतर नहीं पड़ता। फिर तुम्हें कोई डगमगा नहीं सकता। जो अपने भीतर स्वयं थिर हो गया, उसे कभी कोई नहीं डगमगा पाया है। और तुम अपने भीतर थिर नहीं हो। तुम्हारी थिरता झूठी है। सम्हाली हुई है। बुद्ध ने अनुभव दिया, सिद्धांत नहीं। बुद्ध ने सत्य देना चाहा, शास्त्र नहीं। बुद्ध ने निःशब्द प्रतीति दी है, सिद्धांतों का जाल नहीं। और उसका एक ही मार्ग है कि तुम्हारे मन को तुम्हारे सामने पूरा का पूरा विश्लिष्ट करके रख दिया जाए। अपने मन को तुम पहचान लो, अपनी बीमारी को जान लो, औषधि है। ठीक निदान हो जाए, ठीक औषधि मिल जाए, तुम वही हो जाते हो जिसकी सदियों से चर्चा करते रहे हो। बुद्ध दार्शनिक नहीं हैं। बुद्ध वैज्ञानिक हैं। दूसरा प्रश्न: बुद्ध ने अपने संन्यासियों को आहार-विहार, चर्या और आचरण के सूक्ष्म एवं सविस्तार नियम दिए। जैसे चार हाथ तक ही आगे देखना, भिक्षु-भिक्षुणी का आपस में व्यवहार किस ढंग का हो, क्या खाना, क्या पहनना, कहां जाना, कहां न जाना, आदि। आप अपने संन्यासियों के लिए ऐसा कुछ क्यों निश्चित नहीं करते? ने नियम दिए। नियम देने पड़ते हैं, क्योंकि तुम्हारे पास होश नहीं है। अगर होश हो तो नियम व्यर्थ हो जाते हैं। और बुद्ध ने भी सारे नियमों के पीछे ,
SR No.002378
Book TitleDhammapada 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages266
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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