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अकंप चैतन्य ही ध्यान
होश पर ही आग्रह किया। ___ आनंद पूछता है, कोई स्त्री दिखायी पड़ जाए तो क्या करें? तो बुद्ध ने कहा, नीचे देखना। देखना ही मत। और आनंद पूछता है, और अगर ऐसी स्थिति आ जाए कि देखना ही पड़े, तो क्या करना? तो बुद्ध ने कहा, देखना, मगर छूना मत। और , आनंद ने कहा, अगर ऐसी घड़ी आ जाए कि छूना ही पड़े, तो क्या करें? तो बुद्ध ने कहा, होश रखना।
तो आखिर में तो होश ही है। देखना मत, छूना मत, ऊपर-ऊपर हैं। अंतिम घड़ी में तो होश ही है। आनंद ने ठीक किया कि वह पूछता ही गया। बुद्ध का असली अनुशासन क्या है फिर? 'देखना नहीं!' तब तो अंधे देखते नहीं, अंधे परमज्ञान को उपलब्ध हो जाएंगे? 'छूना मत!' हाथ कटवा डालो। तो क्या लूले-लंगड़े परमज्ञान को उपलब्ध हो जाएंगे?
नहीं, अंतिम सूत्र तो बुद्ध ने होश का ही दिया। और अगर होश न हो और तुम आंख भी झुका लो तो क्या फर्क पड़ेगा? आंख बंद में भी तो स्त्री दिखायी पड़ती चली जाती है। रात सपने में दिखायी पड़ती है, तब क्या करोगे? आंख तो बंद ही है। अब सपने में तो कुछ उपाय नहीं और आंख बंद करने का। आंख के भीतर ही चल रही है। फिर क्या करोगे? आनंद की जगह अगर मैं होता तो मैं पूछता, सपने की फिर? सपने में स्त्री दिख जाए, फिर क्या करना? और ऐसे यह भी बड़ा सपना है। बुद्ध समझते हैं। सपने में स्त्री दिख जाए, फिर क्या करना? फिर कैसे आंख झुकाओगे? आंख झुकी ही हुई है। आंख तो बंद ही है, अब और तो कोई बंद करने का उपाय नहीं। ___लेकिन बुद्ध की बात साफ है। बुद्ध ने जो बात कही, उससे सब कोटियों के लिए कह दी। जो अत्यंत जड़बुद्धि हैं, उनसे कहा, आंख झका लेना। यह जड़बुद्धियों के लिए हुआ। जो इतने जड़बुद्धि नहीं हैं, उनसे कहा, देख भी लेना, तो छूना मत। तो हैं ये भी जड़बुद्धि। अंतिम सूत्र असली सूत्र है। क्योंकि उसके पार फिर कुछ नहीं। वह आखिरी अनुशासन है। स्मरण रखना, होश रखना। ' ____ मैंने दो सूत्र छोड़ दिए। क्योंकि दो हजार, ढाई हजार साल का अनुभव कहता है, उनसे कुछ फल न हुआ। मैं बुद्ध से ढाई हजार साल बाद हूं, तो ढाई हजार साल का कुछ अनुभव भी साथ है। ढाई हजार साल में जो घटा वह साफ है। क्या हुआ? जो ऊपर के नियम थे, वे तो टूट गए। और जो ऊपर के नियमों में उलझे, वे व्यर्थ ही परेशान हुए और नष्ट हो गए। जिन्होंने आखिरी सूत्र पकड़ा, वही बचे।
अब मैं तुम्हें उदाहरण दूं कि कैसे घटना घटती है। __एक गांव में बुद्ध ठहरे। एक भिक्षु भिक्षा का पात्र लेकर लौट रहा था वापस। एक चील के मुंह से मांस का टुकड़ा छूट गया। वह भिक्षापात्र में गिर गया टुकड़ा मांस का। अब बड़ी कठिनाई खड़ी हो गयी। क्योंकि बुद्ध कहते हैं कि मांस खाना
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