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________________ एस धम्मो सनंतनो नहीं। और बुद्ध ने यह भी कहा है कि भिक्षापात्र में जो भी डाल दिया जाए, उसे अस्वीकार नहीं करना। अब क्या करना? बड़ी दुविधा खड़ी हो गयी। भिक्षु आया। उसने बुद्ध से पूछा, अब क्या करें? दो नियमों में विरोध हो गया। आप कहते हैं, जो भी भिक्षापात्र में कोई डाल दे उसे इनकार नहीं करना। यह इसलिए कहना पड़ा कि भिक्षु बड़े कुशल हो जाते हैं। जैन मुनियों को देखो, वे इशारा कर देते हैं कि क्या डालो। इशारा कर दिया कि यह मत डालो। मुंह से न बोलेंगे, हाथ से इशारा कर देंगे। क्योंकि बोलने के लिए महावीर ने मना किया है, मांगना मत! तो वे इशारा कर देते हैं कि यह डाल दो, थोड़ा और ज्यादा डाल दो। मगर मुंह से नहीं बोलते। आखिर बेईमान आदमी के लिए नियम क्या करेंगे? कितने कानून हैं दुनिया में। लेकिन चोर हमेशा कानून में से रास्ता निकाल लेता है। आखिर वकील किसलिए हैं? वे रास्ता निकालने के लिए हैं। वह चोर को बताने के लिए कि बनाने दो नियम उनको। हम बैठे हैं। तुम घबड़ाते क्यों हो? आदमी के मन में तर्क है, वह वकील है। वह रास्ता खोज लेता है। वह भिक्षु आया। उसने कहा कि यह क्या मामला, अब क्या करना? आपने कहा भिक्षापात्र में जो भी डाल दिया जाए...। यह बुद्ध ने इसलिए कहा कि नहीं तो लोग मांगते हैं। और बुद्ध का भिक्षु भिखारी हो जाए, भद्दा है। भिक्षु भिखारी नहीं है। वह कोई मांग नहीं रहा है। दे दो तो भला, न दो तो भला। वह आशीर्वाद ही देगा। और अगर वह मांगने लगे, तो फिर बोझ हो जाता है। किसी गरीब के घर के सामने खड़ा हो जाए, और खीर मांगने लगे, और गरीब न दे सके तो पीड़ा होती है। और दे तो कठिनाई हो जाती है। रूखा-सूखा जो गरीब दे दे, वही ले लेना। न दे, तो मन में कुछ बुराई मत लाना, विरोध मत लाना। इसलिए कहा था। बुद्ध को पता भी न था कि जिंदगी ऐसी है कि अब चील कहीं मांस का टुकड़ा गिरा दे। अपवाद है। कोई रोज चील मांस का टुकड़ा गिराएगी भी नहीं। लेकिन अब उस बौद्ध भिक्षु ने पूछा, अब क्या करें? और आप कहते हैं, मांस खाना नहीं। अब इन दोनों में विरोध हो गया। नियमों में हमेशा विरोध हो जाएगा। क्योंकि जिंदगी जटिल है। जिंदगी तम्हारे नियम मानकर थोड़े ही चलती है। भिक्षु मानता होगा नियम, चील थोड़े ही मानती है। चील थोड़े ही कोई बौद्ध भिक्षु है कि बुद्ध के वचन सुनती है! चील अपनी मौज में होगी, छोड़ गयी। और चील को कोई पता भी नहीं है कि भिक्षु के पात्र में गिर • जाएगा। भिक्षु के पात्र में गिराया भी नहीं है। . जीवन में संयोग होते हैं। सिद्धांत नहीं चलते, टूट जाते हैं। संयोग रोज बदल जाते हैं। सिद्धांत अधूरे पड़ जाते हैं। सिद्धांत तो ऐसे ही हैं जैसे छोटे बच्चे के लिए पैंट-कमीज बनाया। वह बच्चा बड़ा हो गया, अब वह पैंट-कमीज छोटा पड़ गया। 88
SR No.002378
Book TitleDhammapada 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages266
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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