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अकंप चैतन्य ही ध्यान
अब दो ही उपाय हैं। या तो पैंट-कमीज बड़ा करो, और या फिर बच्चे को दबा-दबा कर छोटा रखो। तो पैंट-कमीज बड़ा करने में कठिनाई मालूम होती है। कौन करे बड़ा? बुद्ध तो जा चुके। तो जो वह नियम दे गए हैं उसको रहने दो, चाहे आदमी को ही छोटा रहना पड़े तो हर्जा नहीं। लेकिन नियम तो नहीं बदला जा सकता। कौन बदलेगा नियम? और एक बार बदलने की सुविधा दो तो फिर कहां रोकोगे? ।
बुद्ध ने सोचा। बुद्ध अक्सर सोचते नहीं। ऐसा उन्होंने आंख बंद कर ली। उन्होंने बहुत सोचा कि यह मामला तो जटिल है। फिर उन्होंने सोचा, अगर मैं कहूं कि तुम चुनाव कर सकते हो पात्र में से, जो योग्य न हो वह छोड़ दिए, तो वह जानते हैं कि यह तो खतरा हो जाएगा। तो लोग जो नहीं खाना-पीना है वह फेंक देंगे और जो खाना-पीना है वह खा-पी लेंगे। और चुनाव भिक्षु को नहीं करना चाहिए। जो मिल गया भाग्य में, वही ठीक है। फिर अगर यह कहूं कि जो मिल जाए वह खा लेना, तो अब इस मांस के टुकड़े का क्या करना? फिर बुद्ध को खयाल आया कि चीलें कोई रोज तो गिराएंगी नहीं। अब शायद कभी भी न गिरे। हो गया एक दफे, यह संयोग था। इस एक संयोग के लिए नियम बनाना ठीक नहीं। तो बुद्ध ने कहा कि कोई फिकर न करो, जो पात्र में गिर जाए वह खा लेना। अगर मांस गिर गया तो वह तुम्हारे भाग्य का हिस्सा है।
बुद्ध ने सोचा था, चीलें रोज मांस न गिराएंगी। लेकिन अब बौद्ध भिक्षुओं के पात्र में रोज मांस गिरता है। जापान, चीन, बर्मा-रोज। अब श्रावक गिराते हैं। और चूंकि एक दफा बुद्ध ने आज्ञा दे दी थी कि जो पात्र में गिर जाए वह खा लेना, अब श्रावक मांस डालते हैं, मछली डालते हैं, और भिक्षु खाता है। क्योंकि नियम है। इसलिए दुनिया के बड़े से बड़े अहिंसक विचारक बुद्ध की परंपरा में मांसाहार प्रचलित हो गया। चील ने शुरू करवा दिया। ____ अंततः तो होश ही काम आएगा। बाकी कोई नियम काम न आएंगे। इसलिए मैंने सारी विस्तार की बातें छोड़ दी हैं। क्योंकि मैं जानता हूं, अगर तुम्हें तोड़ना ही है तो तुम तरकीब निकाल लोगे। तो तोड़ने का भी तुमको कष्ट क्यों देना। और तोड़ने से जो अपराध का भाव पैदा होता है, वह क्यों पैदा करना। ____ मैं तुम्हें कोई नियम ही नहीं देता। ताकि तुम तोड़ ही न सको। मैं तुम्हें सिर्फ होश देता हूं। सम्हाल सको तो ठीक, न सम्हाल सको तो भी ठीक है। लेकिन बेईमानी पैदा न होगी, पाखंड पैदा न होगा।
मुझे रोकेगा तू ऐ नाखुदा क्या गर्क होने से
कि जिनको डूबना है डूब जाते हैं सफीनों में मांझी से कह रहा है कवि कि तू मुझे बचा न सकेगा डूबने से। क्योंकि
कि जिनको डूबना है डूब जाते हैं सफीनों में नाव में ही डूब जाते हैं। तू बचाएगा कैसे? अगर नदी में डूबने का सवाल होता