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________________ अकंप चैतन्य ही ध्यान अतिथि समझे, गेस्ट। और एक, कि अपने को होस्ट समझे, मेजबान। और इतना ही फर्क है। अभी दुनिया में तुम ऐसे हो जैसे जबर्दस्ती हो। अभी तुम ऐसे हो जैसे बुलाए न गए थे और आ गए हो। अभी तुम ऐसे हो जैसे एक दुश्मन हो। लड़ रहे हो। फिर एक होने का ढंग है शांत। तुम लड़ नहीं रहे हो। तुम मेहमान भी नहीं हो, तुम स्वयं मेजबान हो। तुम्हें किसी ने बुलाया नहीं, तुम मालिक हो। तब तुम्हारे भीतर ऐश्वर्य प्रगट हुआ। परमात्मा प्रगट हुआ। बुद्ध कहते हैं, तुम्हारा ईश्वर तो ऐसा है जैसे अफवाहें सुनी हों। हस्ती का शोर तो है मगर एतबार क्या झूठी खबर किसी की उड़ायी हुई सी है सुनते तो बहुत हैं परमात्मा की बात। हस्ती का शोर तो है मगर एतबार क्या भरोसा कैसे आए? श्रद्धा कैसे हो? झूठी खबर किसी की उड़ायी हुई सी है यह परमात्मा एक झूठी खबर मालूम पड़ता है, जो किसी ने उड़ा दी और चल पड़ी। और एक से दूसरे के हाथ में चली जाती है। एक पीढ़ी दूसरी पीढ़ी को दे जाती है। इस पर भरोसा कैसे आए, एतबार कैसे हो? तो बुद्ध कहते हैं, इस बात में ही मत पड़ो। परमात्मा पर एतबार नहीं लाना है। परमात्मा पर भरोसा नहीं लाना है। लाओगे भी कैसे? जिसे कभी जाना नहीं, जिसे कभी देखा नहीं, जिसे कभी सना नहीं, जिसे कभी पहचाना नहीं, जिसका कोई संस्पर्श न हुआ, जो हृदय में कभी विराजा नहीं, जिसकी छाया कभी तुम्हारे जीवन पर न पड़ी, उसका भरोसा कैसे करोगे? __झूठी खबर किसी की उड़ायी हुई सी है ___ लाख चेष्टा करके भी तो श्रद्धा जमेगी न। जमा भी लो किसी तरह, उखड़ीउखड़ी रहेगी। और नीचे आधार तो नहीं होगा। बेबुनियाद होगी। इस बेबुनियाद श्रद्धा पर जीकर क्या तुम धार्मिक हो जाओगे, आस्तिक हो जाओगे? अगर ऐसा ही होता होता तो सारी पृथ्वी आस्तिक है। हर आदमी आस्तिक है। कोई ईसाई है, कोई हिंदू है, कोई मुसलमान है, कोई जैन है। पृथ्वी पर नास्तिक तो बड़े थोड़े हैं। और जो नास्तिक हैं, अगर उनको भी तुम गौर से देखो, तुम उनको भी आस्तिक ही पाओगे। बाइबिल को न मानते हों, कुरान को न मानते हों, गीता को न मानते हों, तो दास कैपिटल मार्क्स की किताब-को मानते हैं। कृष्ण को न पूजते हों, महावीर को न पूजते हों, तो लेनिन को पूजते हैं। अगर बाइबिल की किताब दबाकर न चलते हों, तो चेयरमैन माओ की लाल किताब को दबाकर चलते हैं। फर्क क्या पड़ेगा? महावीर हों कि माओ, और मोहम्मद हों कि मार्क्स, क्या फर्क पड़ता है? 85
SR No.002378
Book TitleDhammapada 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages266
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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