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अकंप चैतन्य ही ध्यान
परमात्मा उपलब्धि है। उपलब्धि की क्या बात करनी। मन की बीमारी को ध्यान की
औषधि से मिटा देना, परमात्मा मिला ही हुआ है। बात की तो, न की तो, कोई अंतर नहीं पड़ता। जो नहीं जानते, वे बात करें तो भी क्या बात करेंगे? और जो जानते हैं, वे बात करना भी चाहें तो कैसे करेंगे? ऐसा नहीं कि बुद्ध को बात करना नहीं आता। उन जैसा कुशल बात करने वाला कभी हुआ है? शब्दों से वे खेल सकते हैं। कुशल हैं। लेकिन उनका अंतरबोध उन्हें रोकता है। ___पंडित बोले चले जाते हैं। उन्हें पता नहीं, क्या कह रहे हैं। बुद्धपुरुष चुप हो जाते हैं, क्योंकि उन्हें पता है। इतने पवित्रतम को कहा कैसे जा सकता है? ओठों पर लाकर झूठा हो जाएगा। शब्द बड़े छोटे हैं। विराट को समाएंगे, समाएगा नहीं। ऐसे ही जैसे कोई मुट्ठी में आकाश को बांधने चला हो। मुट्ठी तो बंध जाएगी, आकाश बाहर हो जाएगा। ऐसे ही शब्द तो बंध जाते हैं, परमात्मा बाहर छूट जाता है। परमात्मा शब्द परमात्मा नहीं है। और तुम जो परमात्मा की रटन लगाए रखते हो उससे परमात्मा का कुछ लेना-देना नहीं है। वह तुम्हारे मन की ही बीमारी है।
हमको मालूम है जन्नत की हकीकत लेकिन । . दिल के बहलाने को गालिब ये खयाल अच्छा है
तुम्हें अच्छी तरह पता है। तुम्हारा स्वर्ग, तुम्हारा मोक्ष, तुम्हारा परमात्मा, इसकी हकीकत तुम्हें अच्छी तरह मालूम है। यह तुम्हारा परमात्मा कुछ भी नहीं है। सुनी हुई बातचीत है। उड़ी हुई अफवाह है। दूसरों से सुन लिया, गुन लिया, शास्त्रों से पढ़ लिया है। शब्द घुस गया है मन में, संस्कार बन गया है।
हमको मालूम है जन्नत की हकीकत लेकिन ___ और तुम भी जानते हो कि तुम्हारे स्वर्ग का क्या अर्थ है। तुम्हारे ही सपने का विस्तार है। तुम्हें पता है कि तुम्हारा परमात्मा क्या है। वह तुम्हारी ही आकांक्षाओं का पहरेदार है। तुम्हें पता है कि तुमने ये शब्द, ये सिद्धांत क्यों पकड़ रखे हैं। क्योंकि तुम भयभीत हो, अकेले हो, डरते हो, सहारा चाहिए। झूठा ही सही। . हमको मालूम है जन्नत की हकीकत लेकिन
दिल के बहलाने को गालिब ये खयाल अच्छा है __ लेकिन इस अकेले में दिल को बहला लेते हैं, किसी से भर लेते हैं। तुम्हारा परमात्मा सच नहीं है। क्योंकि तुम अभी बहुत सच हो। तुम अभी जरूरत से ज्यादा यथार्थ हो। तुम उसे जगह न दोगे। तुम ही तो बाधा बने हो। तुम्हारे अतिरिक्त तुम्हारे
और परमात्मा के बीच और कोई भी नहीं खड़ा है। ____ इसलिए बुद्ध कहते हैं, मन को समझो। मन यानी तुम। मन यानी मनुष्य। और जहां मन चला गया, वहां ध्यान। और जहां ध्यान, वहां परमात्मा।
तुम्हारे होने के दो ढंग हैं। एक मन और एक ध्यान। तुमने कभी खयाल किया, जब तुम बीमार होते हो, तब भी तुम ही होते हो। और जब तुम स्वस्थ होते हो, तब