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________________ एस धम्मो सनंतनो भी प्यास न बुझेगी। और जिनकी बुझ जाए, समझना कि प्यास लगी ही न थी। तो बुद्ध कहते हैं कि अगर जानना ही हो तो परमात्मा के संबंध में मत सोचो, अपने संबंध में सोचो। क्योंकि मूलतः तुम बदल जाओ, तुम्हारी आंख बदल जाए, तुम्हारे देखने का ढंग बदले, तुम्हारे बंद झरोखे खुलें, तुम्हारा अंतर्तम अंधेरे से भरा है रोशन हो, तो तुम परमात्मा को जान लोगे। फिर बात थोड़े ही करनी पड़ेगी। ___ ज्ञान मौन है। वह गहन चुप्पी है। फिर तुमसे कोई पूछेगा तो तुम मुस्कुराओगे। फिर तुमसे कोई पूछेगा तो तुम चुप रह जाओगे। ऐसा नहीं कि तुम्हें मालूम नहीं है, वरन अब तुम्हें मालूम है, कहो कैसे? गूंगे केरी सरकरा। कहना भी चाहोगे, जबान न हिलेगी। बोलना चाहोगे, चुप्पी पकड़ लेगी। इतना बड़ा जाना है कि शब्दों में समाता नहीं। पहले शब्दों की बात बड़ी आसान थी। जाना ही नहीं था कुछ, तो पता ही नहीं था कि तुम क्या कह रहे हो। जब तुम ईश्वर शब्द का उपयोग करते हो तो तुम कितने महत्तम शब्द का प्रयोग कर रहे हो, इसका कुछ पता न था। ईश्वर शब्द कोरा था, खाली था। अब अनुभव हुआ। महाकाश समा गया उस छोटे से शब्द में। अब उस छोटे से शब्द को मुंह से निकालना झूठा करना है। अब कहना नहीं है। अब तुम्हारा पूरा जीवन कहेगा, तुम न कहोगे। इसलिए बुद्ध ने कहा, बात मत करो। चर्चा की बात नहीं है। पीना पड़ेगा। जीना पड़ेगा। अनुभव करना होगा। जो जानते नहीं, उनकी बात व्यर्थ है। जो जानते हैं, वे उसकी बात नहीं करते। ऐसा नहीं कि वे बात नहीं करते। बुद्ध ने बहुत बात की है। लेकिन परमात्मा के संबंध में न की। मनुष्य के संबंध में की। मनुष्य बीमारी है। परमात्मा स्वास्थ्य है। बीमारी को ठीक पहचान लो, कारण खोज लो, निदान करो, चिकित्सा हो जाने दो; जो शेष बचेगा बीमारी के चले जाने पर-मनुष्य के तिरोहित हो जाने पर तुम्हारे भीतर जो शेष रह जाएगा-वही परमात्मा है। तुम जब तक हो तब तक परमात्मा नहीं है, तुम लाख सिर पटको, तुम लाख शब्दों का संयोजन जमाओ, तुम लाख भरोसा करो। तुम्हारा भरोसा तुम्हारा ही होगा। इसे थोड़ा समझना। तुम कहते हो, मैं श्रद्धा करता हूं। लेकिन मैं की कहीं कोई श्रद्धा होती है! मैं तो मूलतः अश्रद्धालु है। मैं संदेह है। उचित होगा कहना कि जब तक तुम हो तब तक श्रद्धा नहीं है। जब तुम न रहोगे, एक गहन सन्नाटा छा जाएगा, तुम्हारी कोई सीमा पता न लगेगी, तुम ऐसे चुप हो जाओगे जैसे कि कभी बोले ही नहीं, जैसे पत्ता भी नहीं खड़का, ऐसा गहन सन्नाटा तुम्हारे भीतर छा जाएगा; तुम नहीं रहोगे, तब तुम अचानक पाओगे, श्रद्धा के कमल खिले। श्रद्धा के साज पर गीत उठा। श्रद्धा नाची तुम्हारे भीतर। तुम्हारी मौजूदगी बाधा है। तो बुद्ध कहते हैं, तुम्हारी चर्चा का सवाल नहीं है, तुम्हारे चुप हो जाने का सवाल है। इसलिए बुद्ध मन की बात करते हैं। मन बीमारी है, ध्यान औषधि है, 82
SR No.002378
Book TitleDhammapada 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages266
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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