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________________ एस धम्मो सनंतनो ही गया। जो जितनी जल्दी जाग जाए उतना समझदार है। बुद्धि की और प्रतिभा की यही कसौटी है कि कितनी जल्दी तुम जागे। और थोड़े ही कोई बुद्धिमाप है। पश्चिम में बुद्धिमाप को नापने का ढंग है वह बहुत सस्ता है। हमने पूरब में एक अलग ढंग निकाला था। हम आदमी की प्रतिभा इस बात से मापते थे कि कितनी जल्दी उसने पहचाना कि असार असार है और सार सार है। कितनी जल्दी? जो जितनी जल्दी पहचान लिया, उतना ही प्रतिभाशाली है। जो मरते दम तक नहीं पहचान पाता, जो आखिरी घड़ी आ जाती है और कहे चला जाता है गो हाथ को मुंबिश नहीं आंखों में तो दम है रहने दे अभी सागर-ओ-मीना मेरे आगे वह प्रतिभाहन है। वह मूढ़ है। उसमें कोई समझ नहीं है। वह कितना ही समझदार हो दुनिया की नजरों में, वह अपने ही भीतर अनुभव करेगा कि उस समझदारी से उसने दूसरों को धोखा भले दिया हो, अस्तित्व को धोखा नहीं दे पाया। अस्तित्व के सामने तो वह नंगा भिखारी ही रहेगा। 'जो सार को सार जानते हैं और असार को असार, वे ही सम्यक संकल्प के भाजन लोग सार को प्राप्त होते हैं।' । पहचान, पाने का पहला कदम है। हीरा हीरा समझ में आ जाए तो खोज शुरू होती है। पत्थर पत्थर समझ में आ जाए, तो छोड़ना शुरू हो गया, छूट ही गया। ठीक को पहचान लेना, महावीर ने सम्यक ज्ञान कहा है। शंकर ने विवेक कहा है। सम्यक दृष्टि। ठीक से देख लेना, क्या अपना हो सकता है। अपने अतिरिक्त और कुछ अपना नहीं हो सकता है। इसलिए वही खोजने योग्य है। जीसस ने कहा है, तुम सारे संसार को पा लो और खुद को गंवा दो, तो तुमने कुछ भी नहीं पाया। और तुम खुद को पा लो और सारा संसार गंवा दो, तो तुमने कुछ भी नहीं गंवाया। जो अपना नहीं था, वह अपना था ही नहीं। जो अपना था, वही अपना है। 'जिस तरह ठीक प्रकार से न छाए हुए घर में वर्षा का पानी घुस जाता है, उसी प्रकार ध्यान-भावना से रहित चित्त में राग घुस जाता है।' 'जिस प्रकार ठीक से छाए हुए घर में वर्षा का पानी नहीं घुस पाता है, उसी प्रकार ध्यान-भावना से युक्त चित्त में राग नहीं घुस पाता है।' राग को तुम छोड़ न पाओगे। ध्यान को जगाना पड़ेगा। इतनी पहचान पहले तुम्हें आ जाए कि क्या व्यर्थ है और क्या सार्थक है, फिर तुम ध्यान को जगाओ। फिर राग को छोड़ने में मत लग जाना। क्योंकि वह भूल बहुतों ने की है। राग को पकड़ो, तो भी राग से उलझे रहोगे; राग को छोड़ो, तो भी राग से उलझे रहोगे। असली सवाल राग का नहीं है। 76
SR No.002378
Book TitleDhammapada 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages266
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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