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________________ ध्यानाच्छादित अंतर्लोक में राग को राह नहीं लिए बजाएंगे। चलो अभी हम तुम्हारे लिए बजाए देते हैं, कल तुम हमारे लिए बजा देना। ऐसा पारस्परिक लेन-देन चलता है। हम तुम्हारी प्रशंसा कर देते हैं, तुम हमारी कर देना। लेकिन कौन किसी दूसरे के सुख के लिए चेष्टा कर रहा है? लोग अपने सुख की चेष्टा कर रहे हैं। ___ इसलिए जो आदमी भी तुम्हारी प्रशंसा करेगा, वह कभी न कभी बदला लेगा। उसके भीतर कांटा गड़ता ही रहेगा कि प्रशंसा करनी पड़ी। देखेंगे किसी उचित समय पर, जब हमारा हाथ ऊपर होगा और तुम्हारा नीचे होगा। यहां कौन अपना है? इस जिंदगी का कुल हिसाब इतना है कुछ हसीं ख्वाब और कुछ आंस उम्र भर की यही कमाई है कुछ सुंदर सपने और कुछ आंसू, उम्रभर की यही कमाई है। सपने देखते रहो, सपनों को संजोते रहो और टूटे सपनों के लिए रोते रहो। इधर टूटे सपने इकट्ठे होते जाते हैं, तुम नए सपने देखते रहो। अतीत तुम्हारा आंसू बनता जाता है, भविष्य हसीन ख्वाब। बस, इन दोनों के बीच में तुम जीते हो। कल जो बीत गया कुछ भी पाया नहीं, रेगिस्तान हो गया। आने वाले कल में तुम मरूद्यान बसाए हो, वह भी कल बीता जाता है। वह भी आज हो गया, वह भी कल हो जाएगा-वह भी जा रहा है। मरते वक्त तुम पाओगे, पूरा जीवन एक रेगिस्तान की यात्रा थी-लंबी, थकान भरी, धूल-धवांस भरी। हार, संताप, चिंता सब था, लेकिन और कुछ हाथ न लगा। धूल हाथ लगी। कुछ अपना नहीं हो पाता। और जो अपना नहीं है, वह सार नहीं हो सकता। सार तो वही है जो तुम्हारा हो जाए, तुम्हारे भीतर हो जाए, और कभी तुमसे अलग न हो। जो तुम्हारी सत्ता बन जाए, तुम्हारा अस्तित्व बन जाए। सार की हमारी परिभाषा यही है। असार वही है, जो तुमसे बाहर रहे। आज तुम्हारा है, कल पराया हो जाए। हो ही जाएगा। कल किसी और का था। कोई घर यहां मकान नहीं है। सभी सराय हैं। कल कोई और ठहरा था, आज तुम ठहरे हो, कल कोई और ठहर जाएगा। . दुनिया का एतबार करें भी तो क्या करें आंसू तो अपनी आंख का अपना हुआ नहीं अपनी आंख का आंसू भी यहां अपना नहीं होता, और अपना क्या हो सकता है? जिनको हम अपना कहते हैं वे भी अपने नहीं हैं। अपने अतिरिक्त अपना यहां कुछ भी नहीं। स्वयं के अतिरिक्त और कोई संपत्ति नहीं है। इसलिए जिसने जीवन को स्वयं की खोज में लगाया है। उसने ही सार की खोज में लगाया है। और जो और कुछ भी खोज रहा हो स्वयं को छोड़कर, वह चाहे सारी पृथ्वी की संपदा पा ले, सारा साम्राज्य पा ले, आखिर में पाएगा हाथ खाली हैं। हृदय एक रोता हुआ भिखारी का पात्र है, जिसमें कुछ भी न पड़ा। और जीवन ऐसे 75
SR No.002378
Book TitleDhammapada 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages266
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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