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________________ एस धम्मो सनंतनो हो, उनको जितनी अपनी गरीबी का पता चलता है उतना किसी को भी नहीं चलता। जिनको तुम पंडित कहते हो, उनको जितने अपने अज्ञान का बोध होता है, किसी को भी नहीं होता। कहें भले न। कहने के लिए हिम्मत चाहिए। कहने के लिए बड़ा दुस्साहस चाहिए। क्योंकि कहने का मतलब यह होगा कि मैं अपने पूरे जीवन को व्यर्थ घोषित करता हूं, कि अब तक मैंने जो खोजा, जो मैंने श्रम उठाया, वह दो कौड़ी का साबित हुआ। मैं गलती में था। बड़ा मुश्किल होता है यह मानना कि मैं गलती में था। और सफलता के शिखर पर मानना तो अहंकार के बिलकुल प्रतिकूल हो जाता है। लेकिन यही कथा है। असफल ही सोचता है कि सार होगा धन में, सार होगा पद में। जो पद पर हैं, जो धन पर हैं, केमहीं सोचते। सोच ही नहीं सकते। भले दिखावा करते हों, लेकिन भीतर से भवन गिर गया है। ऊपर से साज-सजावट बनाए रखते हों, नींव खिसक गयी है। अगर तुममें थोड़ी भी समझ हो और गहरे देखने की क्षमता हो, तो हर सफल आदमी में तुम असफलता को पाओगे। और हर आदमी की यश-कीर्ति में तुम बड़ा संतप्त हृदय पाओगे, रोता हुआ हृदय पाओगे। मुस्कुराहटों में अगर झांकने की क्षमता आ जाए, तो तुम छिपे हुए आंसू देख पाओगे। 'जो असार को सार समझते हैं और सार को असार, वे मिथ्या संकल्प के भाजन लोग सार को प्राप्त नहीं होते।' होंगे भी कैसे! 'जो सार को सार जानते हैं और असार को असार, वे सम्यक संकल्प के भाजन लोग सार को प्राप्त होते हैं।' सार क्या है, इसे जान लेना आधा पा लेना है। क्या है सार? अब तक जिंदगी में तुमने जो खोजा है, उसमें से तुम्हें क्या ऐसा लगता है जिसे सार कहा जा सके? धन खोज लिया; कल तुम मरोगे, वह पड़ा रह जाएगा। जो साथ न जा सके वह सार कैसे होगा? प्रशंसा पा ली, लोगों ने तालियां बजायीं और गजरे पहना दिए। गजरे क्षणभर बाद कुम्हला जाएंगे, तालियों की आवाज हो भी न पाएगी और खो जाएगी। और सारी दुनिया भी ताली बजाए, तो भी सार क्या होगा? मिलेगा क्या? उससे तुम्हें कौन सी जीवन-संपदा उपलब्ध होगी? और फिर भरोसा कहां है? जो आज ताली बजाते हैं, वे कल गाली देने लगते हैं। ___ असल में जिसने भी ताली बजायी, वह गाली देगा ही। वह बदला लेगा। जब ताली बजायी थी तो वह कोई प्रसन्नता में नहीं बजा रहा था। लोग दूसरों से अपने लिए ताली बजवाना चाहते हैं, तब प्रसन्न होते हैं। तुम भी ज़ब कोई ताली तुम्हारे लिए बजाता है तब तुम प्रसन्न होते हो। जब तुम्हें बजानी पड़ती है, तुम मजबूरी में बजाते हो। शायद इस आशा में बजाते हो कि हम दूसरों के लिए बजाएंगे, तो दूसरे हमारे 74
SR No.002378
Book TitleDhammapada 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages266
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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