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ध्यानाच्छादित अंतर्लोक में राग को राह नहीं
तो बुद्ध बड़ा ठीक उदाहरण दे रहे हैं। सीधा, सरल; कि ठीक से घर के छप्पर पर इंतजाम न किया गया हो, खपड़ेल ठीक से न छायी हो, तो वर्षा का पानी घुस जाता है। फिर ठीक से आच्छादित हो घर, खपड़ेल ठीक से साज-संवार कर रखी गयी हो, वर्षा का पानी नहीं घुस पाता। ध्यान से छायी हुई आत्मा में राग प्रवेश नहीं करता। राग घुस रहा है तो इसका इतना ही संकेत समझना कि आत्मा पर ठीक से छावन नहीं की गयी है, ध्यान का छप्पर छेद वाला है।
इसलिए राग को छोड़ने की फिक्र मत करना। वह तो ऐसा ही होगा कि ठीक से घर छाया हुआ नहीं है, वर्षा आ गयी, आषाढ़ के मेघ घिर गए, पानी बरसने लगा
और तुम घर का पानी उलीचने में लगे हो। तुम उलीचते रहो पानी, इससे कोई फर्क न पड़ेगा। क्योंकि घर का छप्पर नए पानी को लिए आ रहा है। राग को उलीचने से कुछ भी न होगा। छप्पर को ठीक से छा लेना जरूरी है।
इसलिए समस्त प्रज्ञावान पुरुषों का जोर ध्यान पर है। और जो महात्मा तुम्हें साधारणतया समझाते हैं कि राग छोड़ो, गलत समझाते हैं। वे तुमसे कह रहे हैं, पानी उलीचो। नाव में छेद है, वे कहते हैं, पानी उलीचो। पर तुम पानी उलीचते रहो, नाव का छेद नया पानी भीतर ला रहा है। पानी तो उलीचो जरूर, पहले छेद को बंद करो। फिर पानी को उलीचने में कोई कठिनाई न होगी। छप्पर को छा दो, फिर जो थोड़ाबहुत पानी बचा रह गया है, उसे बाहर कर देने में क्या अड़चन होने वाली है? ध्यान जो साध लेता है, उसका राग अपने आप मिट जाता है। राग से जो लड़ता है, उसका राग तो मिटता ही नहीं, ध्यान भी सधना मुश्किल हो जाता है।
मेरे पास रोज लोग आते हैं। वे कहते हैं, किसी तरह क्रोध चला जाए। मैं उनसे कहता हूं, तुम क्रोध की फिकर मत करो, तुम ध्यान करो। वे कहते हैं, ध्यान से क्या होगा? आप तो हमें क्रोध छोड़ने की तरकीब बता दें। ऐसे लोग भी आ जाते हैं, वे कहते हैं, हमें ध्यान-व्यान से कुछ लेना-देना नहीं; हमारा तो मन अशांत है, यह भर शांत हो जाए। अब वे क्या कह रहे हैं, उन्हें पता नहीं! . अभी चार दिन पहले एक वृद्ध सज्जन ने कहा कि मुझे कुछ नहीं चाहिए। बस मेरे मन में चिंता सवार रहती है, सो नहीं सकता ठीक से, कंपता रहता हूं, डरता रहता हूं, बस यह मेरा मिट जाए। न मुझे मोक्ष चाहिए, न मुझे आत्मा के ज्ञान का कुछ लेना-देना है, न मुझे भगवान का कोई प्रयोजन है, बस मेरी चिंता मिट जाए। अब यह आदमी यह कह रहा है कि यह जो वर्षा का पानी घर में भर गया है, यह भर न भरे। मुझे खप्पर छाने नहीं; मुझे मोक्ष, परमात्मा, आत्मा से कुछ लेना-देना नहीं।
अब कुछ भी नहीं किया जा सकता। क्योंकि यह समझ ही नहीं रहा है कि बीमारी कहां है।
धन छोड़ने में मत लगना, ध्यान को पाने में लगना। क्योंकि छोड़ने में जो शक्ति लगाओगे उतनी ही शक्ति से ध्यान पाया जा सकता है। मुफ्त तो छोड़ना भी नहीं