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________________ एस धम्मो सनंतनो ही न पड़ेगा तुम्हारे मुंह से कब निकल गया-बंदर छाप काला दंतमंजन। तुम सोचते हो सोच-विचारकर खरीद रहे हो। वह बार-बार की पुनरुक्ति ने तुम्हें सम्मोहित किया। बार-बार की पुनरुक्ति ने तुम्हारे मन पर संस्कार छोड़ दिए। तुम उन्हीं को दोहराए चले जा रहे हो। इसलिए तो विज्ञापन का इतना भारी उपयोग है। लोग चीजें बाद में बनाते हैं, विज्ञापन पहले चला देते हैं। ____ अमरीका में तो दो-तीन साल बाद प्रोडक्शन शुरू होगा उस चीज का, उत्पत्ति शुरू होगी, तीन साल पहले विज्ञापन शुरू हो जाता है। क्योंकि बाजार पहले बनाना पड़ता है। मांग पहले पैदा करनी पड़ती है। और जब मांग पैदा हो जाती है, तो ही बाजार में सामान लाने की कोई जरूरत है। और आदमी ऐसा पागल है कि किसी भी चीज के लिए उसको तुम खरीदने के लिए राजी कर सकते हो, सिर्फ दीवालों पर, अखबारों में, रेडियो पर, टेलीविजन पर दोहराने की जरूरत है। कुछ भी दोहराओ, आदमी तैयार हो जाएगा खरीदने को। क्योंकि उसे लगेगा कि पता नहीं कौन सा सुख मैं चूका जा रहा हूं, जो इस चीज से मिलने वाला है। __ सुख की भ्रांति दो, सुख की आशा बंधाओ और कोई भी चीज बेची जा सकती है। आदमी से ज्यादा मूढ़ कोई और दूसरा जानवर पृथ्वी पर नहीं है। तुम किसी भैंस को भी राजी नहीं कर सकते। वह अपनी प्रकृति से जीती है। जो घास खाना है, वही खाती है। तुम कितना ही विज्ञापन करो, तुम कितना ही बैंड-बाजा बजाओ, वह बिलकुल फिकर न करेगी। लेकिन आदमी, तत्क्षण! क्योंकि आदमी अपनी प्रकृति भूल गया है। तो ऐसी चीजें खा रहा है जिनमें कुछ, कोई भी पौष्टिकता नहीं है। लेकिन विज्ञापन चला रहा है उन चीजों को, तो वह खाएगा। ____धीरे-धीरे सभी चीजें अपनी पौष्टिकता खोती जा रही हैं। क्योंकि यह सवाल ही नहीं है कि उनमें जीवनदायी-तत्व होने चाहिए। रंग अच्छा होना चाहिए, गंध अच्छी होनी चाहिए। अब रंग और गंध से कोई पौष्टिकता का संबंध नहीं है। रंग और गंध तो ऊपर से डाली जा सकती हैं। डाली जा रही हैं। भोजन रंगीन दिखना चाहिए, सुगंध अच्छी आनी चाहिए; फिर उससे खून बनता है या नहीं, यह सवाल नहीं है। फिर उससे हड्डी बनती है या नहीं, यह सवाल नहीं है। तुम किसी जानवर को धोखा नहीं दे सकते। वह जानता है कि क्या उसके जीवन में उपयोगी है। लेकिन आदमी को धोखा दिया जा सकता है। दिया जा रहा है। हर चीज के लिए तुम उसे राजी कर सकते हो, ठीक विज्ञापन की जरूरत है। बुद्ध कहते थे, चार कदम से आगे देखना ही मत। क्योंकि उतना चलने के लिए पर्याप्त है। इसको वह संयम कहते हैं। बुद्ध कहते, जो सुनने योग्य नहीं है, उसे सुनना मत। जो छूने योग्य नहीं है, उसे छूना मत। जितना जीवन में जरूरी है, आवश्यक है, उससे पार मत जाना। और तुम अचानक पाओगे, तुम्हारे जीवन में शांति की वर्षा होने लगी। अशांत तुम इसलिए हो कि जो गैर-जरूरी है उसके पीछे 70
SR No.002378
Book TitleDhammapada 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages266
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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