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ध्यानाच्छादित अंतर्लोक में राग को राह नहीं
उसी संतति में होगा, उसी श्रृंखला में होगा, लेकिन वही नहीं।
यह बुद्ध की धारणा बड़ी अनूठी है। लेकिन बुद्ध ने जीवन को पहली दफा जीवंत करके देखा। और जीवन को क्रिया में देखा, गति में देखा। और जो भी आलस्य में पड़ा है, जो रुक गया है, ठहर गया है, जो नदी न रहा और सरोवर बन गया, वह सड़ेगा। . ____ 'विषय-रस में अशुभ देखते हुए विहार करने वाले, इंद्रियों में संयत, भोजन में मात्रा जानने वाले, श्रद्धावान और उद्यमी पुरुष को मार वैसे ही नहीं डिगाता जैसे आंधी शैल-पर्वत को।' __ तुम्हारी निर्बलता और दुर्बलता का सवाल है। जब तुम हारते हो, अपनी दुर्बलता से हारते हो। जब तुम जीतते हो, अपनी सबलता से जीतते हो। वहां कोई तुम्हें हराने को बैठा नहीं है। इस बात को खयाल में ले लो। शैतान है नहीं, मार है नहीं। तुम्हारी दुर्बलता का ही नाम है। जब तुम दुर्बल हो, तब शैतान है। जब तुम सबल हो, तब शैतान नहीं है। तुम्हारा भय ही भूत है। तुम्हारी कमजोरी ही तुम्हारी हार है। ___ इसलिए यह जो हम बहाने खोज लेते हैं अपना उत्तरदायित्व किसी के कंधे पर डाले देने का, कि शैतान ने भटका दिया, कि क्या करें मजबूरी है, पाप ने पकड़ लिया। कोई पाप है कहीं जो तुम्हें पकड़ रहा है? तुमने भला पाप को पकड़ा हो, पाप तुम्हें कैसे पकड़ेगा?
तो मार तो केवल एक काल्पनिक शब्द है। इस बात की खबर देने के लिए कि तुम जितने कमजोर होते हो उतना ही तुम्हारी कमजोरी के कारण, तुम्हारी कमजोरी से ही आविर्भूत होता है तुम्हारा शत्रु। तुम जितने सबल होते हो, उतना ही शत्रु विसर्जित हो जाता है। ___ सबल होने की कला योग है। कैसे तुम अपने भीतर संयत हो जाओ। तो हर चीज सम्यक होनी चाहिए। इंद्रियों का उपयोग संयम से भरा होना चाहिए। बुद्ध अपने भिक्षुओं को कहते थे, जब तुम राह पर चलो, चार कदम आगे से ज्यादा मत देखो। कोई जरूरत नहीं है। चार कदम आगे देखना पर्याप्त है। उसना संयम है।
लेकिन तुम भी चलते हो रास्ते पर। जिस दीवाल पर लिखे हुए इश्तहार को तुम हजार बार पढ़ चुके हो, उसको आज फिर पढ़कर आए हो। वह चाहे हिमकल्याण तेल हो, या बंदर छाप काला दंतमंजन हो, उसको तुम कितनी बार पढ़ चुके हो। उसे तुम क्यों बार-बार पढ़ रहे हो? __ तुम उसे पढ़ो न-बुद्ध की तरह अगर तुम चार कदम नीचे देखकर चलो-तो दीवालें अपने आप साफ हो जाएं। लोग लिखना बंद कर दें। तुम पढ़ते हो, इसलिए वे लिखते हैं। तुम जब तक पढ़ते रहोगे तब तक वे लिखते रहेंगे। क्योंकि बार-बार पढ़कर तुम्हारे मन में एक सम्मोहन पैदा होता है। बंदर छाप काला दंतमंजन, बंदर छाप काला दंतमंजन...। जब तुम दुकान पर दंतमंजन खरीदने जाओगे, तुम्हें याद