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एस धम्मो सनंतनो
बुद्ध ने तो गति को इतने आत्यंतिक ऊंचाई पर उठाया कि बुद्ध ने कहा कि जहां भी तुम्हें कोई चीज ठहरी हुई मालूम पड़े, वहीं समझ लेना झूठ है।
इसलिए बुद्ध ने परमात्मा शब्द का उपयोग नहीं किया। क्योंकि परमात्मा शब्द ही ठहराव मालूम होता है। परमात्मा का मतलब है, जो हो चुका और अब नहीं हो सकता। जिसमें कोई गति नहीं । परमात्मा में गति कैसे होगी ? क्योंकि गति तो अपूर्ण में होती है। पूर्ण में कैसी गति ? वह तो है ही वही जो होना चाहिए। अब उसमें कुछ और हो नहीं सकता । परमात्मा बूढ़ा नहीं हो रहा, ज्यादा ज्ञानी नहीं हो रहा, अज्ञानी नहीं हो रहा, पवित्र नहीं हो रहा, अपवित्र नहीं हो रहा ।
बुद्ध ने कहा, ऐसी कोई चीज है ही नहीं । बुद्ध ने कहा, 'है' शब्द झूठ है; 'होना' शब्द सत्य है। जब तुम कहते हो, पहाड़ है, तो बुद्ध कहते हैं, ऐसा मत कहो, पहाड़ है । ऐसा कहो, पहाड़ हो रहा है। बुद्ध के प्रभाव में जो भाषाएं विकसित हुईं, जैसे बर्मी, जो कि बुद्ध धर्म के पहुंचने के बाद भाषा बनी, तो वहां 'है' जैसा कोई शब्द नहीं है बर्मी भाषा में। जब पहली दफा बाइबिल का अनुवाद किया बर्मी भाषा में तो बड़ी कठिनाई आयी । 'गॉड इज', इसको कैसे अनुवाद करो ? 'ईश्वर है' - इसके लिए कोई ठीक-ठीक रूपांतरण बर्मी भाषा में नहीं होता। और जब रूपांतरण करो तो उसका मतलब होता है- 'गॉड इज बिकमिंग' - ईश्वर हो रहा है। क्योंकि वह बुद्ध के प्रभाव में भाषा बनी है। बुद्ध ने कहा, हर चीज हो रही है। तुम जवान हो, ऐसा कहना ठीक नहीं है। जवान हो रहे हो । बूढ़े हो, ऐसा कहना भी ठीक नहीं है। बूढ़े हो रहे हो। जीवन है, ऐसा कहना ठीक नहीं। जीवन हो रहा है। मृत्यु है, ऐसा कहना भी ठीक नहीं । मृत्यु हो रही है । जगत में क्रियाएं हैं, घटनाएं नहीं।
इसलिए बुद्ध ने कहा, कोई परमात्मा नहीं है। और बुद्ध ने कहा, कोई आत्मा भी नहीं है। क्योंकि ये तो थिर चीजें मालूम पड़ती हैं। आत्मा, जैसे कोई ठहरा हुआ पत्थर भीतर रखा है। बुद्ध ने कहा, ऐसा कुछ भी नहीं है। चीजें हो रही हैं।
बुद्ध ने जो प्रतीक लिया है जीवन को समझाने के लिए, वह है दीए की ज्योति । सांझ को तुम दीया जलाते हो । रातभर दीया जलता है, अंधेरे से लड़ता है। सुबह तुम दीया बुझाते हो। क्या तुम वही ज्योति बुझाते हो जो तुमने रात जलायी थी ? वही ज्योति तो तुम कैसे बुझाओगे ? वह ज्योति तो करोड़ बार बुझ चुकी । ज्योति तो प्रतिपल बुझ रही है, धुआं होती जा रही है। नयी ज्योति उसकी जगह आती जा रही
रात तुमने जो ज्योति जलायी थी वह सुबह तुम उसे थोड़े ही बुझाओगे। उसी की श्रृंखला को बुझाओगे, उसी को नहीं। वह तो जा रही है, भागी जा रही है, तिरोहित हुई जा रही है आकाश में। नयी ज्योति प्रतिपल उसकी जगह आ रही है।
तो बुद्ध ने कहा, तुम्हारे भीतर कोई आत्मा है ऐसा नहीं, चित्त का प्रवाह है। एक चित्त जा रहा है, दूसरा आ रहा है। जैसे दीए की ज्योति आ रही है। तुम वही न मरोगे जो तुम पैदा हुए थे। जो पैदा हुआ था, वह तो कभी का मर चुका । जो मरेगा वह
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