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________________ ध्यानाच्छादित अंतर्लोक में राग को राह नहीं तो सड़ जाते। उनके लौटाने का तो ढंग वही है जो मेरे दूसरे भाई ने किया; जिसने आपको राख दी। लेकिन जिन बीजों से सुगंध उठ सकती है उनको दुर्गंध की शकल में लौटाना मुझे न भाया। ये आपके बीज हैं, आप सम्हाल लें। ये सारे फूल आपके हैं। थोड़े से बीज करोड़ गुना हो गए थे। नहीं, कबीर ने जो कहा है वह अतिशयोक्ति नहीं, उन्होंने सत्य को बड़े धीमे स्वर में कहा है, ज्यों की त्यों धरि दीन्हीं चदरिया। बुद्धों ने चदरिया को और भी निखारकर लौटाया है। जो बीज थे उसको फूल की तरह लौटाया है। पवित्रता बढ़ती है प्रतिपल, जैसे अपवित्रता बढ़ती है। तुम जिसे सम्हालोगे वही बढ़ने लगता है। जीवन में कोई चीज रुकी हुई नहीं है, सभी चीजें गतिमान हैं। जीवन एक प्रवाह है। या तो पीछे की तरफ जाओ, या आगे की तरफ जाओ, रुकने का कोई उपाय नहीं है। जो जरा भी रुका, वह भटका। ये पंक्तियां ध्यान से सुनो जुस्तजु-ए-मंजिल में इक जरा जो दम लेने काफिले ठहरते हैं राह भूल जाते हैं जरा दम लेने! ___ जुस्तजु-ए-मंजिल में इक जरा जो दम लेने इस जिंदगी की राह पर, यात्रा पर जरा दम लेने को भी जो ठहरते हैं। काफिले ठहरते हैं राह भूल जाते हैं __ जो रुका, वह भूला। जो जरा ठहरा, वह भटका। क्योंकि जो आगे न गया, वह पीछे गया। जो बढ़ा नहीं, वह गिरा। जो चला नहीं, वह पीछे सरका। क्योंकि जीवन गति है, यहां ठहराव नहीं है। एडिंग्टन का बहुत प्रसिद्ध वचन है कि मनुष्य की भाषा में रेस्ट शब्द-ठहराव-सबसे झूठा शब्द है। क्योंकि ऐसी कोई घटना कहीं नहीं। कोई चीज ठहरी हई नहीं है। तुम यहां बैठे हो, ठहरे हुए नहीं हो। तुम लगते हो बैठे हो। चल रहे हो। प्रतिपल बढ़ रहे हो। रात सो रहे हो, तब भी ठहरे हुए नहीं हो। बिस्तर पर भी हजारों प्रक्रियाएं चल रही हैं। तुम्हारा जीवन गतिमान है। रात भी नदी बह रही है, सुबह भी नदी बह रही है, दिन भी नदी बह रही है। अंधेरा हो कि उजाला, आकाश में बादल घिरे हों कि आकाश खुला हो, नदी बह रही है। __वैज्ञानिक कहते हैं कि रात सोते समय भी तुम्हारा मस्तिष्क पूरा काम कर रहा है। सीना पूरा काम कर रहा है। श्वास चल रही है। शरीर में खून शुद्ध किया जा रहा है। भोजन पचाया जा रहा है। तुम बूढ़े हो रहे हो, जवान हो रहे हो। कुछ घट रहा है। रुकाव जैसी कोई चीज नहीं है। पत्थर भी ठहरा हुआ नहीं है। क्योंकि पत्थर भी रेत होने के रास्ते पर आगे बढ़ा जा रहा है। आज पत्थर है, कल रेत हो जाएगा। कुछ भी ठहरा हुआ नहीं है। ठहराव झूठ है। ठहराव भ्रांति है। गति सत्य है।
SR No.002378
Book TitleDhammapada 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages266
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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