________________
एस धम्मो सनंतनो
लगती हो तो स्वाभाविक है कि भरोसा नष्ट हो जाए। और आदमी डरने लगे, कंपने लगे। पैर उठाए उसके पहले ही जानने लगेगा कि मंजिल तो मिलनी नहीं है, यात्रा व्यर्थ है, क्योंकि हजारों बार यात्रा की है और कभी कुछ हाथ लेकर लौटा नहीं। हाथ खाली के खाली रहे।
'आलसी और अनुद्यमी...।' __ आलस्य असंयत जीवन का परिणाम है। जितना ही इंद्रियां असंयत होंगी और जितना ही वस्तुओं में, विषयों में रस होगा, उतना ही स्वभावतः आलस्य पैदा होगा।
आलस्य इस बात की खबर है कि तुम्हारी जीवन-ऊर्जा एक संगीत में बंधी हुई नहीं है। आलस्य इस बात की खबर है कि तुम्हारी जीवन-ऊर्जा अपने भीतर ही संघर्षरत है। तुम एक गहरे युद्ध में हो। तुम अपने से ही लड़ रहे हो। अपना ही घात कर रहे हो। ___ उद्यम बुद्ध उसी को कहते हैं जब तुम्हारी जीवन-ऊर्जा एक संगीत में प्रवाहित होती है। तुम्हारे सब स्वर एक लय में बद्ध हो जाते हैं। तुम एक पुंजीभूत शक्ति हो जाते हो। तब तुम्हारे भीतर बड़ी ताजगी है, बड़े जीवन का उद्दाम वेग है। तब तुम्हारे भीतर जीवन की चुनौती लेने की सामर्थ्य है। तब तुम जीवंत हो। अन्यथा मरने के पहले ही लोग मर जाते हैं। मौत तो बहुत बाद में मारती है, तुम्हारी नासमझी बहुत पहले ही मार डालती है। ___'विषय-रस में अशुभ देखते हुए विहार करने वाले, इंद्रियों में संयत, भोजन में मात्रा जानने वाले, श्रद्धावान और उद्यमी पुरुष को मार वैसे ही नहीं डिगाता जैसे आंधी शैल पर्वत को।'
आंधी आती है, जाती है। कोई हिमालय उससे डिगता नहीं। पर तुम्हारे भीतर हिमालय की शांत, संयत दशा होनी चाहिए। हिमालय एक प्रतीक है। बहुमूल्य
शैल-शिखर। अर्थ केवल इतना है कि तुम जब भीतर अडिग हो, जब तुम्हें कुछ भी डिगाता नहीं, जब तुम ऐसे स्थिर हो जैसे शैल-शिखर-आंधी आती है, चली जाती है; तुम वैसे ही खड़े रहते हो जैसे पहले थे-तब तो ऐसा होगा कि आंधी तुम्हें और स्वच्छ कर जाएगी। गिराना तो दूर, तुम्हारी धूल-झंखाड़ झाड़ जाएगी। तुम्हें और नया कर जाएगी, ताजा कर जाएगी।
इसे ऐसा समझो कि तुम राह से गुजरते हो। एक सुंदर युवती पास से गुजर गयी। इस सुंदर युवती में जीवन की एक धारा, एक तरंग तुम्हारे पास से गुजरी। अगर तुम्हारी ऐसी भ्रांत चित्त की दशा है कि रस विषय में है, तो तुम कंप जाओगे। तो यह स्त्री का गुजर जाना या पुरुष का गुजर जाना, तुम्हें ऐसे कंपा जाएगा जैसे कि कोई सूखे, मरते हुए वृक्ष को आंधी कंपा जाए। गिरने-गिरने को हो जाए, या गिर ही जाए। तब तुम पाओगे कि यह घटना दुर्भाग्यपूर्ण हो गयी। लेकिन अगर तुम संयत हो, अगर तुम शांत हो, अगर तुम मौन हो और अडिग हो, अगर ध्यान की तुम्हारे
64