________________
ध्यानाच्छादित अंतर्लोक में राग को राह नहीं
लेकिन वह कुत्तों का शास्त्र है । बिल्ली के शास्त्रों में चूहों के बरसने का ही उल्लेख है। कुत्ते को सूखी हड्डी में रस है। इसलिए उसके पुराण सूखी हड्डियों के पास निर्मित होंगे। बिल्ली को चूहे में रस है । तो निश्चित ही चूहे में कुछ ऐसा नहीं है जिसके कारण बिल्ली को रस है । बिल्ली में ही कुछ ऐसा है, जो चूहे में रस है । कुत्ते में ही कुछ ऐसा है, जो हड्डी में रस है ।
हमारी वृत्ति में कहीं रस का कारण है, विषय-वस्तु में नहीं। यह पहला विश्लेषण है।
मैं पढ़ रहा था, दूसरे महायुद्ध में एक घटना घटी। बर्मा के जंगलों में सिपाहियों का एक जत्था, सैनिकों का एक जत्था जूझ रहा है युद्ध में। महीनों हो गए। उन युवकों ने स्त्री की शकल नहीं देखी। और एक दिन दोपहर को एक तोता उड़ा जोर से कहता हुआ कि बड़ी सुंदर युवती है, अत्यंत सुंदर युवती है। सैनिकों ने अपनी बंदूकें रख दीं। बहुत दिन हुए स्त्री नहीं देखी। और तोता कह रहा है तो वे सब तोते का पीछा करते हुए भागे कि कहां जा रहा है । और वे जब पहुंचे, परेशान, झाड़ियों को पार करके, तो वहां कोई स्त्री न थी । एक मादा तोता, जिसकी वह तोता खबर कर रहा था। उन्होंने अपना सिर पीट लिया कि कहां इस नासमझ की बातों में पड़े !
लेकिन तोते का रस मादा तोते में है। तुम्हें कोई रस नहीं मालूम होता मादा तोते में। मादा तोते में कोई रस है भी नहीं। वह तो नर तोते की धारणा में है । पुरुष को स्त्री में रस मालूम होता है । स्त्री को पुरुष में रस मालूम होता है। वह रस बाहर नहीं है, वह तुम्हारी भावदशा में है । वह तुममें है। बुखार के बाद स्वादिष्ट से स्वादिष्ट भोजन में स्वाद नहीं मालूम होता । तुम्हारी जीभ ही बदल गयी है। तुम्हारी जीभ में स्वाद लेने की जो क्षमता है, वही नहीं रही है। भोजन में थोड़े ही स्वाद होता है। स्वाद तुम्हारी जीभ की क्षमता है। जब तुम स्वस्थ होते हो, स्वाद होता है । जब अस्वस्थ होते हो, स्वाद खो जाता है ।
जीवन का जो रस है, वह वस्तु में और विषय में नहीं है, वह स्वयं तुममें है । और जब तक तुम उसे विषय में देखोगे, तब तक तुम गलत मार्ग पर भटकते रहोगे, क्योंकि तुम विषय का पीछा करोगे। जब तुम देखोगे कि वह रस मुझमें ही है, वह मैंने ही डाला है वस्तु में, वह मैंने ही प्रक्षेपित किया है, वह रस मैंने ही आरोपित किया है, उसी दिन तुम्हारे जीवन में क्रांति शुरू हो जाएगी। तब रस को खोजना हो तो अपने भीतर गहरे जाओ। अब बाहर जाने की कोई जरूरत न रही।
दुनिया में दो ही तरह की यात्राएं हैं। एक बाहर की यात्रा है। अधिक लोग उसी यात्रा पर जाते हैं, क्योंकि उनको दिखता है कि रस बाहर है। हड्डियों में रस मालूम होता है । फिर कुछ लोग जाग जाते हैं। और उन्हें दिखायी पड़ता है, बाहर तो रस नहीं है, रस मैं ही डालता हूं। मैं ही डालता हूं और मैं ही अपने को भरमा लेता हूं। रस मुझमें है। तो फिर वे अंतर्यात्रा पर जाते हैं।
61