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एस धम्मो सनंतनो
बातों को क्यों करना? इतना ही कहा, वहां दुख नहीं होगा। आनंद को तुम समझोगे कैसे? आनंद तुमने जाना नहीं। वह शब्द थोथा है, अर्थहीन है। तुम उसमें जो अर्थ भी डालोगे, वह वही होगा जो तुमने जाना है। तुम अपने सुख को ही आनंद समझोगे। उसको थोड़ा बड़ा कर लोगे-करोड़ गुना कर लोगे--लेकिन वह मात्रा का भेद होगा, गुण का न होगा। और आनंद गुणात्मक रूप से भिन्न है। वह तुम्हारा सुख बिलकुल नहीं है। वह तुम्हारा दुख भी नहीं है, सुख भी नहीं है।
तो बुद्ध ने कहा, उसकी बात कैसे करें? उसकी बात ही करनी उचित नहीं। इतना ही कहा कि दुख-निरोध हो जाएगा। तुमने जिसे दुख की तरह जाना है, वह वहां नहीं होगा। बीमारी नहीं होगी। स्वास्थ्य क्या होगा, वह तुम स्वयं स्वाद ले लेना और जान लेना। और जिन्होंने भी स्वाद लिया, उन्होंने कहा नहीं। गूंगे का गुड़ है।
ये जो बुद्ध के वचन हैं, उनके मनोविज्ञान की आधारशिलाएं हैं
'विषय-रस में शुभ देखते हुए विहार करने वाले, इंद्रियों में असंयत, भोजन में मात्रा न जानने वाले, आलसी और अनुद्यमी पुरुष को मार वैसे ही गिरा देता है जैसे आंधी दुर्बल वृक्ष को।'
विषय-रस में शुभ देखते हुए जो जीता है, वह निरंतर दुख में गिरता है। इस बात को विस्तार से समझ लेना जरूरी है। क्योंकि समस्त योग और समस्त अध्यात्म इसी बात की समझ पर खड़ा होता है। विषय में रस मालूम होता है। रस विषय में है या मनुष्य की अपनी धारणा में?
कभी कुत्ते को देखा, सूखी हड्डी को चूसता है और रस पाला है। सोचता है, सूखी हड्डी से लहू निकल रहा है। लहू निकलता नहीं। सूखी हड्डी में कहां लहू ? लेकिन सूखी हड्डी मुंह में चबाता है तो उसके मुंह से ही लहू बहने लगता है। सूखी हड्डी गड़ती है, चोट करती है मुंह में, लहू निकल आता है। उस लहू को वह पीता है, और सोचता है, हड्डी से रस मिल रहा है।
लेकिन कुत्ते को समझाओ, समझेगा न। उसने कभी भीतर प्रवेश करके देखा नहीं कि सूखी हड्डी से कैसा रस निकलेगा! सूखी हड्डी रसहीन है। और अगर रस निकल रहा है तो कहीं मुझसे ही निकलता होगा। __ मैंने सुना है कि एक सर्दी की सुबह एक कुत्ता एक वृक्ष के नीचे धूप ले रहा है और विश्राम कर रहा है। उसी वृक्ष के ऊपर जगह बनाए बैठी है एक बिल्ली, वह भी सुबह की झपकी ले रही है। उसको नींद में बड़े प्रसन्न होते देखकर कुत्ते ने पूछा कि मामला क्या है? तू बड़ी आनंदित मालूम होती है। उस बिल्ली ने कहा कि मैंने एक सपना देखा, बड़ा अनूठा सपना, कि वर्षा हो रही है, पानी नहीं गिर रहा, चूहे गिर रहे हैं। कुत्ते ने कहा, नासमझ बिल्ली! नासमझ कहीं की, मूढ़! न शास्त्र का ज्ञान, न पुराण पढ़े, न इतिहास का पता! शास्त्रों में कभी भी ऐसा उल्लेख नहीं है। हां, कई दफा वर्षा हुई है, सूखी हड्डियां जरूर बरसी हैं, चूहे कभी नहीं।