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________________ ध्यानाच्छादित अंतर्लोक में राग को राह नहीं खींच लेने दो। तीर छाती में लगा है, खतरा है। तुम ज्यादा देर न बच सकोगे। बुद्ध कहते, ऐसी ही दशा में मैं तुम्हें पाता हूं। और तुम पूछते हो कि संसार किसने बनाया? पहले इसका पता चल जाए, तब करेंगे ध्यान। क्यों बनाया? पहले इसका पता चल जाए, तब बदलेंगे जीवन को। क्या कारण है परमात्मा का संसार बनाने में? क्यों यह लीला उसने रची? जब तक इसका पता न चल जाए, तब तक हम मंदिर में प्रवेश न करेंगे। बुद्ध कहते हैं, जीवन का तीर छाती में चुभा है। पल-पल मर रहे हो। किसी भी क्षण डूब जाओगे। ये उत्तर, ये प्रश्न, सब व्यर्थ हैं। अभी तो एक ही बात पूछो कि कैसे यह तीर निकल आए। इसलिए बुद्ध की बातें शायद उतनी गहरी न मालूम पड़ें जितनी कपिल और कणाद की; कांट और हीगल की; प्लेटो और अरस्तू की। लेकिन ज्यादा यथार्थ हैं। ज्यादा वास्तविक हैं। और गहराई का करोगे क्या, अगर गहराई झूठी हो और शब्दों की हो? असली सवाल यथार्थ को समझना है। बुद्ध पहले मनुष्य हैं जिन्होंने परमात्मा के बिना ध्यान करने की विधि दी। जिन्होंने परमात्मा की मान्यता को ध्यान के लिए आवश्यक न माना। और न केवल परमात्मा की बल्कि आत्मा की धारणा को भी ध्यान के लिए आवश्यक न माना। उन्होंने कहा, ध्यान तो स्वास्थ्य है। तुम स्वस्थ हो सकते हो। फिर शेष तुम खोज लेना। मैं तुम्हें रोग से मुक्त करने आया हूं। . इसलिए बुद्ध को तुम एक मनस-चिकित्सक की भांति देखना। वे धर्मगुरु नहीं हैं। धर्मगुरु मान लेने से बड़ी भ्रांति हो गयी। तो लोग उन्हें दूसरे धर्मगुरुओं के साथ गिन देते हैं। वे धर्मगुरु जरा भी नहीं हैं। कहीं परमात्मा की धारणा के बिना कोई धर्म हो सकता है? कहीं आत्मा की धारणा के बिना कोई धर्म हो सकता है ? तत्व की तो कोई बुद्ध ने बात ही नहीं की। तथ्य की बात की। उन जैसा यथार्थवादी खोजना मुश्किल है। और उन्होंने मनुष्य की असली तकलीफ को पकड़ा और कहा यह तकलीफ सुलझ सकती है। __ उन्होंने चार आर्य-सत्यों की घोषणा की कि मनुष्य दुखी है। इसमें किसको संदेह होगा? इसका कौन विरोध करेगा? मनुष्य दुखी है। मनुष्य के दुख का कारण है। ठीक बद्ध वैसा ही बोलते हैं जैसे वैज्ञानिक बोलता है। दुख का कारण है। क्योंकि अकारण कैसे दुख होगा? पैर में पीड़ा हो, तो कांटा लगा होगा। सिर दुखता हो, तो कारण होगा। पीड़ा है तो अकारण कैसे होगी? पीड़ा का कारण है। तो बुद्ध ने कहा है पहला आर्य-सत्य कि मनुष्य दुख में है। दूसरा आर्य-सत्य कि दुख का कारण है। और तीसरा आर्य-सत्य कि दुख के कारण को मिटाया जा सकता है। और चौथा आर्य-सत्य कि एक ऐसी भी दशा है जब दुख नहीं रह जाता। बुद्ध ने यह भी नहीं कहा कि वहां आनंद होगा। क्योंकि वह कहते हैं, व्यर्थ की 59
SR No.002378
Book TitleDhammapada 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages266
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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