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एस धम्मो सनंतनो
हैं, आकाश थोड़े ही लाना है, सिर्फ बदलियां हटा देनी हैं। आकाश तो मौजूद ही है। आकाश तो तुम हो। इसलिए अब और प्रेम क्या लाना है, तुम प्रेम हो ! थोड़े घृणा के बादल हट जाएं, बस ।
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थोड़े से छोटे-छोटे प्रश्न :
बहुत से लोग एक साथ अकेले अकेले की यात्रा पर जा सकें। साथ जाने के लिए संघ नहीं बनाया। साथ तो कोई जा ही नहीं सकता समाधि में । अकेले-अकेले ही जाना होता है। यात्रा का अंत तो सदा अकेले पर होता है। लेकिन प्रारंभ में अगर साथ हो, तो बड़ा ढाढ़स, बड़ा साहस मिल जाता है ।
बुद्ध ने कहा कि अकेले ही है सत्य की यात्रा। फिर विराटतम संघ क्यों बनाया?
तुम अकेले ध्यान करो, तो भरोसा नहीं आता कि कुछ होगा । तुम्हें अपने पर भरोसा खो गया है। तुम दस हजार आदमियों के साथ ध्यान करो, तुम्हें अपने पर तो भरोसा नहीं है, यह नौ हजार नौ सौ निन्यानबे लोगों की भीड़ पर तुम्हें भरोसा आ जाता है।
इसे भी प्रत्येक की यही हालत है। इनको अपने पर भरोसा नहीं है। हो भी क्या अपने पर भरोसा ! जिंदगी भर की कुल कमाई कूड़ा-करकट है। कुछ अनुभव तो आया नहीं। इनकी आस्था ही खो गयी है कि हमें, और शांति मिल सकती है। असंभव! इन्हें अगर आनंद मिल भी जाए, तो ये सोचेंगे कि यह कोई कल्पना हुई, या किसी ने कोई जादू कर दिया। मुझे, और आनंद ! नहीं, यह हो नहीं सकता। सभी की यही हालत है।
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लेकिन दस हजार लोग जब साथ खड़े होते हैं, तो नौ हजार नौ सौ निन्यानबे तुम्हें बल देते हैं कि जिस तरफ इतने लोग जा रहे हैं, वहां कुछ होगा। यह बल प्राथमिक धक्का बन जाता है। इससे गति शुरू हो जाती है। एक बार गति शुरू हो गयी, फिर तो तुम्हें अपने ही अनुभव से भरोसा आने लगता है। धीरे-धीरे साथ की कोई जरूरत नहीं रह जाती। तुम अकेले हो जाते हो । अकेले होने के लिए भी साथ की जरूरत है। तुम इतने कमजोर हो गए हो, तुमने इतना अपने स्वभाव को भुला दिया है कि तुम्हें अपने पर ही भरोसा लाने के लिए भीड़ की जरूरत हो जाती है।
बुद्ध ने संघ बनाया ताकि लोग अकेले की अंतर्यात्रा पर एक-दूसरे के सहारे प्राथमिक चरण उठा सकें। अंतिम चरण तो सदा अकेला है। फिर तो वहां कोई भी नहीं रह जाता है। और बुद्ध के हिसाब में तो आखिरी चरण पर तुम भी नहीं रह