SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 64
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ अस्तित्व की विरलतम घटना : सदगुरु हटा दो। और मजा यह है कि वैर के हटाते ही प्रेम साधना नहीं पड़ता; तुम अचानक पाते हो कि अरे! यह वैर के कारण ही प्रेम दिखायी नहीं पड़ता था, यह तो सतत बह रहा है भीतर। यह तो स्वभाव है। प्रेम आत्मा है। लेकिन किताबों से सावधान होना जरूरी है। किताबों से पढ़-पढ़ कर मत प्रेम को समझने की कोशिश करना। ____ मैंने सुना है, एक पियक्कड़ को एक धर्मगुरु समझा रहा था कि देख, बंद कर यह पीना, नहीं तो परमात्मा से चूक जाएगा। तो उस पियक्कड़ ने कहा कि हमने तो पी-पीकर और बेहोश हो-होकर ही उसे पहचाना है। तो परीक्षा हो जाए। उसने कहा किधर से बर्क चमकती है देखें ऐ वाइज मैं अपना जाम उठाता हूं तू किताब उठा और बिजली किस तरफ चमकती है देखेंगे। तू अपनी किताब उठा! मैं अपना जाम उठाता हूं तू किताब उठा किधर से बर्क चमकती है देखें ऐ वाइज और फिर देखेंगे कि कहां से बिजली चमकती है? तेरी किताब से, या मेरे जाम से? एक किताबों की दुनिया है और एक जाम की दुनिया है। एक पीने वालों की दुनिया है, जिन्होंने जाना स्वाद। और एक केवल शब्दों के गुणतारा बिठाने वालों की दुनिया है। इसमें थोड़ा खयाल रखना। जिन्होंने जाना है, उन्होंने कहा अवैर। और जिन्होंने नहीं जाना, उन्होंने कहा प्रेम। और जो प्रेम की कहते हैं, उनके कहने से कभी प्रेम नहीं आया। और जिन्होंने अवैर समझाया, उनके कहने से प्रेम आया। यह विरोधाभास है। मैं अपना जाम उठाता हूं तू किताब उठा किताबें मुर्दा हैं। वेद, कुरान, पुराण, सब मुर्दा हैं। जब तक जीवन का जाम खुद न पीया जाए तब तक तुम जो कहते हो, कितनी ही कुशलता से कहो, झूठ झूठ ही रहेगा, सच नहीं हो पाता है। ___हमने दो शब्द इस देश में उपयोग किए हैं-एक कवि और एक ऋषि। ऋषि हम उसको कहते हैं जिसका काव्य अनुभव से आया। और कवि हम उसे कहते हैं जिसका काव्य कल्पना से आया। दोनों कवि हैं। लेकिन ऋषि वह है, जिसने जीया। जिसने अपने काव्य में अपने कलेजे को रखा। जिसने पीया। और जिसके ओठों पर स्वाद है। वह भी शब्दों का उपयोग करता है। लेकिन फर्क हो जाता है। ___ महावीर ने कहा, अहिंसा। प्रेम नहीं। बुद्ध ने कहा, अवैर। प्रेम नहीं। क्योंकि दोनों ने यह बात समझ ली कि असली सवाल प्रेम को लाने का नहीं है, असली सवाल हिंसा को हटाने का है। वैर को हटाने का है। घृणा को हटाने का है। घृणा है रोग, हटते ही प्रेम का स्वास्थ्य अपने आप उपलब्ध हो जाता है। बदलियां घिर गयी
SR No.002378
Book TitleDhammapada 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages266
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy