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________________ एस धम्मो सनंतनो . और जो भी बुद्ध ने कहा है, स्मरण रखना, वह एक गहन अनुभव से कह रहे हैं। ऐसे प्रेम को जानकर कह रहे हैं। वह कोई प्रेम के कवि नहीं हैं, न प्रेम के दार्शनिक हैं। उन्होंने प्रेम का अनुभव किया है। इस नए ढंग के प्रेम को जाना है, जो स्वभाव बन जाता है। तुमने जो भी प्रेम के संबंध में जाना है, उसमें से जानना तो बहुत कम है। या तो कवियों ने तुमसे कुछ कह दिया है, उसे तुम दोहरा रहे हो। क्योंकि फ्रायड ने अपने एक पत्र में एक मित्र को लिखा है कि अगर दुनिया में कवि न होते, तो शायद प्रेम को कोई जानता ही नहीं। __ बात समझ में आती है। कवि गाते रहे प्रेम की बात। हालांकि कवियों को भी कोई प्रेम बहुत पता होता है, ऐसा नहीं। अक्सर तो बात उलटी है। जिनके जीवन में प्रेम नहीं होता, वे प्रेम की कविता करके अपने मन को बहलाते हैं। जिसके जीवन में प्रेम है, वह कविता किसलिए करेगा? उसका जीवन ही कविता होता है। लेकिन जिनके जीवन में प्रेम नहीं होता, वे बैठकर प्रेम की कविता कर-कर के अपने मन को बहलाते हैं। जो प्रेम वे प्रगट नहीं कर पाए किसी और तरह से, उसे कविता में उंडेलते हैं। अक्सर प्रेम की सौ में से निन्यानबे कविताएं उन लोगों ने लिखी हैं जिन्हें प्रेम का कोई अनुभव नहीं है। यह बड़ी कठिन बात है। अक्सर बहादुरी की बातें वे ही लोग करते हैं जो कायर हैं। वे अक्सर बहादुरी के किस्से गढ़कर बताते रहते हैं। बहादुर को क्या बहादुरी की बात करनी! बहादुरी काफी है। बुद्ध ने जो कहा है वह किसी कवि की बात नहीं है। न किसी शास्त्रकार की बात है। उन्होंने प्रेम जाना। और उन्होंने प्रेम एक ही तरह से जाना। और एक ही तरह से जाना है किसी ने जब भी जाना। उन्होंने वैर छोड़कर जाना है। तुम जिसे प्रेम कहते हो, उसे वे भी जानते थे। उनकी पत्नी थी, बच्चा था, मां थी, पिता थे-सब थे। उनको उन्होंने खूब प्रेम किया था। और एक दिन पाया कि उस प्रेम में कुछ भी नहीं है। वह केवल मन का सपना है। उस प्रेम की व्यर्थता को देखकर वह हट आए। उन्होंने फिर नए ढंग का प्रेम खोजना चाहा। उस प्रेम में तो घृणा दबी थी, मिटी न थी। उन्होंने एक ऐसा प्रेम जानना चाहा जो इतना शुद्ध हो कि घणा उसे विकृत न करे। जिसमें घणा की एक बूंद भी न हो। और मजा ऐसा है कि दूध की भरी प्याली में जहर की एक बूंद काफी है उसे नष्ट करने को। यद्यपि जहर की भरी प्याली में दूध की एक बूंद उसे शुद्ध न करेगी। विकृत बड़ा समर्थ है। अशुद्ध बड़ा समर्थ है। शुद्ध बड़ा कोमल है, नाजुक है। फूल की तरफ एक पत्थर मार दो तो फूल बिखर जाता है। और हजार फूल पत्थर को मारो तो भी कुछ नहीं होता। बुद्ध खोज में निकले उस प्रेम की जो अविकृत है, अनकरप्टेड, कुंवारा है। और उस प्रेम को उन्होंने इस ढंग से पाया कि उन्होंने वैर छोड़ा। वैर रहते तुम प्रेम को साधोगे, तुम्हारा वैर उस प्रेम को विकृत कर देगा, जहरीला कर देगा। पहले वैर को 50
SR No.002378
Book TitleDhammapada 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages266
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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