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अस्तित्व की विरलतम घटना : सदगुरु
करना ही प्रमाण हो जाएगा। उस आदमी को बार-बार दिखायी पड़ने लगेगा कि कुछ भी नहीं हो रहा है, किसी को कुछ भी नहीं हो रहा है। और लोग जाने लगे हैं। अपने
आप बाजार उजड़ जाएगा। ___ बुद्ध ने यही किया। वह गए तो, लेकिन जिसके पास भी गए, जो भी उसने कहा, वही किया। कुछ ने तो ऐसी मूढ़तापूर्ण बातें कहीं उनसे-वह भी उन्होंने की-कि कहने वालों को भी दया आने लगी कि यह हम क्या करवा रहे हैं! किसी ने कहा कि बस एक चावल का दाना रोज। इतना ही भोजन लेना। अब मूढ़तापूर्ण बातें हैं। लेकिन बुद्ध ने वह भी किया। कहते हैं, उनकी हड्डियां-हड्डियां निकल आयीं। उनका पेट पीठ से लग गया। चमड़ी ऐसी हो गयी कि छुओ तो उखड़ जाए शरीर से। तब उस गुरु को भी दया आने लगी। कितना ही धोखेबाज रहा हो, अब यह जरा अतिशय हो गयी। उसने हाथ जोड़े, और उसने कहा कि तुम कहीं और जाओ। जो मैं जानता था मैंने बता दिया। इससे ज्यादा मुझे कुछ पता नहीं है।
ऐसे बुद्ध की निष्ठा ने ही उनकी अपनी निष्ठा ने ही–कसौटी का काम किया। भटकते रहे, सबको जांच लिया, कहीं कुछ पाया नहीं। तब अकेले की यात्रा पर गए। और यह भी सोच लेने जैसा है कि तुम अक्सर चूंकि करना नहीं चाहते, इसलिए जल्दी मानना चाहते हो। तुम्हारी मानने की जल्दी भी करने से बचने की तरकीब है।
जीवन में प्रत्येक चीज अर्जित करनी होती है। श्रद्धा भी इतनी आसान नहीं है, कि तुमने कर ली और हो गयी। संघर्ष करना होगा। तपाना पड़ेगा। स्वयं को जलाना पड़ेगा। धीरे-धीरे निखरेगा तुम्हारा कुंदन। गुजरेगा आग से स्वर्ण, शुद्ध होगा। तभी तुम्हारे भीतर श्रद्धा का आविर्भाव होगा। और सदगुरु गली-कूचे नहीं बैठे हुए हैं। कभी हजारों वर्ष में एक सिद्ध सदगुरु होता है। सदियां बीत जाती हैं खोजियों को खोजते-खोजते।
इसलिए अगर कभी तुम्हें किसी सदगुरु की भनक पड़ जाए तो सौभाग्य समझना! अहोभाग्य समझना!!
चौथा प्रश्नः
भगवान बुद्ध ने अवैर के स्थान पर प्रेम शब्द का व्यवहार क्यों नहीं किया ?
जा न कर। अवैर नकारात्मक है, अहिंसा जैसा। बुद्ध कहते हैं, वैर छोड़ दो, तो
जो शेष रह जाता है वही प्रेम है। बुद्ध प्रेम करने को नहीं कहते। क्योंकि
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