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________________ अस्तित्व की विरलतम घटना : सदगुरु जरा सी देर को हटे बादल और सूरज दिखायी पड़ गया, एक झलक ही सही; अंधेरी रात में चमकी बिजली, एक झलक दिखायी पड़ गयी कि राह है, और दूर खड़े मंजिल के कलश झलक गए - बस, श्रद्धा उत्पन्न हुई। इस श्रद्धा की महिमा और ! इस श्रद्धा को तुम अपनी श्रद्धा मत समझना । इस श्रद्धा को तुम अपनी कमजोर नपुंसक धारणाएं मत समझना । यह श्रद्धा अर्जित करनी होती है। बुद्ध ने कहा, कोई व्यक्ति पैदा होते से श्रद्धा लेकर नहीं आता । संदेह ही लेकर आता है। हर बच्चा संदेह लेकर आता है। इसलिए तो बच्चे इतने प्रश्न पूछते हैं, जितने बूढ़े भी नहीं पूछते । बच्चा हर चीज से प्रश्न बना लेता है। स्वाभाविक है। पूछना ही पड़ेगा। क्योंकि पूछ-पूछकर ही तो वहां पहुंचेंगे जहां अनुभव होगा और सब पूछना गिर जाता है, सब जिज्ञासा गिर जाती है । मुझसे लोग कहते हैं, आप क्यों इतना समझाते हैं जब श्रद्धा से पहुंचना है ? समझाता हूं ताकि श्रद्धा तक पहुंचना हो जाए। फिर तो तुम खुद ही चल लोगे। श्रद्धा काफी है। फिर मेरी जरूरत न होगी। श्रद्धा तक तुम्हें फुसलाकर ले आऊं, फिर तो मार्ग सुगम है। फिर तो तुम खुद ही चल लोगे, फिर तो तुम्हारी श्रद्धा ही खींच लेगी। फिर तो श्रद्धा का चुंबक काफी है। तीसरा प्रश्न : बुद्ध सब गुरुओं से हताश ही हुए। क्या उन्हें कोई सिद्ध सदगुरु न मिला ? द्ध सदगुरु इतने आसान नहीं। रोज-रोज नहीं होते। जगह-जगह नहीं मिलते। हजारों वर्ष बीत जाते हैं, तब कभी कोई एक सिद्ध सदगुरु होता है । तो यह सवाल तुम्हारे मन में इसलिए उठता है कि तुम सोचते ही, सिद्ध सदगुरु तो गांव-गांव बैठे हुए हैं । सदगुरु बनकर बैठ जाना एक बात है। बाजार में दुकान खोलकर बैठ जाना एक बात है। और यह मामला कुछ ऐसा है परमात्मा का, अदृश्य का मामला है ! इसलिए पकड़ना भी बहुत मुश्किल है। मैंने सुना है कि अमरीका में एक दुकान पर अदृश्य हेअर पिन बिकते थे। अदृश्य! तो स्त्रियां तो ऐसी चीजों में बड़ी उत्सुक होती हैं । अदृश्य हेअर पिन ! दिखायी भी न पड़े, और बालों में लगा भी रहे। बड़ी भीड़ लगती थी, क्यू लगता था। एक दिन एक औरत पहुंची। उसने डब्बा खोलकर देखा, उसमें कुछ था तो है नहीं। क्योंकि अदृश्य तो कुछ दिखायी पड़ता ही नहीं । उसने कहा, इसमें हैं भी ? उसने कहा, यह तो अदृश्य हेअर पिन हैं। ये दिखायी थोड़े ही पड़ते हैं। थोड़ा संदेह 45
SR No.002378
Book TitleDhammapada 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages266
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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