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एस धम्मो सनंतनो
भाई-भतीजावाद ! अपना नाता करीब का है, करवा देंगे तुम्हारा इंतजाम भी। खुद खाओगे, कोई पुण्य न होगा । ब्राह्मण को खिलाओगे, पुण्य होगा। लोग भूखों मरते हैं, पंडे-पुरोहितों को देते हैं।
उस धर्मगुरु ने बहुत धन इकट्ठा कर लिया। एक रात एक आदमी उसकी छाती पर चढ़ गया जाकर, छुरा लेकर। और उसने कहा, निकाल, सब रख दे ! उसने गौर से देखा, वह उसकी ही जाति का आदमी था। उसने कहा, अरे ! तुझे पता है, नर्क में सड़ेगा । उसने कहा, छोड़ फिकर, पहली श्रेणी का टिकट पहले ही खरीद लिया है, सब निकाल पैसा । तुमसे ही खरीदा है टिकट । वह हम पहले ही खरीद लिए हैं, उसकी तो फिकर ही छोड़ो। अब नर्क से तुम हमें न डरवा सकोगे। वे कोई और होंगे जिनको तुम डरवाओगे। हम टिकट पहले ही ले लिए हैं; अब तुम सब पैसा जो तुम्हारे पास इकट्ठा किया है तिजोड़ी में, दे दो ।
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लोग यही कर रहे हैं। इसको तुम चरित्र कहते हो ! भय पर खड़े, लोभ पर खड़े व्यक्तित्व को तुम चरित्र कहते हो ! यह चरित्र का धोखा है।
बुद्ध ने यह धोखा नहीं दिया। बुद्ध ने कहा, समझ, सोच-विचार, चिंतन, मनन। और धीरे-धीरे तुम्हें उस जगह ले आना है, जहां से पार दिखायी पड़ना शुरू होता है। जहां अतिक्रमण होता है। जहां तुम आ जाते हो किनारे अपने सोचने के और देखते हो उसे जो सोचा नहीं जा सकता। जहां रहस्य तुम्हें आच्छादित कर लेता है और विचार अपने से गिर जाते हैं। जहां विराट तुम्हारे करीब आता है और तुम्हारी छोटी खोपड़ी चक्कर खाकर ठहर जाती है। अवाक ।
बुद्ध ने कहा, श्रद्धा थोपेंगे नहीं । श्रद्धा तक तुम्हारी यात्रा करवाएंगे। इसलिए क्षा बुद्ध ने दी और श्रद्धा की बात भी नहीं की। यही तो उनकी कला है। और जितनी दीक्षा उन्होंने दी, किसने दी ? जितने लोगों को उन्होंने संन्यास के अमृत का स्वाद चखाया, किसने चखाया ? जितनी श्रद्धा बुद्ध इस पृथ्वी पर उतारकर लाए, कभी कोई नहीं ला सका था । और आदमी ने बात भी न की श्रद्धा की । यही उनकी कला है। यही उनकी खूबी है। यही उनकी विशिष्टता है । दूसरे सिर पीट-पीटकर मर गए, श्रद्धा करो, विश्वास करो, और कूड़ा-करकट दे गए लोगों को । बुद्ध ने व्यर्थ की बातें कीं । बुद्ध ने, जीवन में जो भी था, सभी का सीढ़ी की तरह उपयोग कर लिया। तर्क है, तो उपयोग करना है । छोड़कर कहां जाओगे ? सीढ़ी बना लो। संदेह है, घबड़ाओ मत। इसकी भी सीढ़ी बना लेंगे, डर क्या है ? इस पर भी चढ़ जाएंगे। तर्क के कंधे पर खड़े होंगे, संदेह के सिर पर खड़े होंगे, और पार देखेंगे।
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और जब पार का दिखायी पड़ता है, तो श्रद्धा उतरती है।
श्रद्धा उस पार के अनुभव का अनुसंग है। उसकी छाया है। जैसे गाड़ी के बैलों के पीछे चाक चले आते हैं । जैसे तुम भागते हो, तुम्हारे पीछे तुम्हारी छाया भागती चली आती है। जिसको दिखायी पड़ गया विराट, एक झलक भी मिल गयी उसकी;
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