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एस धम्मो सनंतनो
शरण आने का निमंत्रण क्यों देते हैं? __ लेकिन यह निमंत्रण वह उन्हीं को देते हैं जो नास्तिकता से पार हो गए हैं। यह हर किसी को नहीं देते। हर किसी को तो वह विचार देते हैं, विश्लेषण देते हैं। फिर जो विचार और विश्लेषण करते हैं, और जो अपने अनुभव से भी बुद्ध के गवाह हो जाते हैं और कहते हैं, ठीक कहते हो तुम। सोचकर भी हमने यही पाया कि सोचना व्यर्थ है। शास्त्रों में झांककर देखा कि शास्त्र बेकार हैं। ठीक कहते हो तुम कि धर्म परंपरा नहीं, विद्रोह है। हमने भी सोचकर देख लिया। लेकिन अब सोचना भी समाप्त होता है। अब आगे...? अब तुम हमें आगे भी ले चलो। तब बुद्ध शिष्यत्व देते हैं। तब दीक्षा देते हैं। जो विचार से गुजर आया, जो विचार से निकल आया, जो विचार के जाल के बाहर उठ आया, उसे बुद्ध दीक्षा देते हैं।
मुझसे लोग मूछते हैं कि अगर श्रद्धा से ही उसे पाना है, तो आप लोगों को इतना समझाते क्यों हैं?
समझाता हूं इसलिए कि पहले श्रद्धा को पाना है। श्रद्धा से उसको पाना है, जरूर; स्वीकार। लेकिन पहले श्रद्धा को पाना है। और श्रद्धा को तुम कैसे पाओगे? दो उपाय हैं। एक तो तुम्हें भयभीत कर दूं कि नर्क में, अग्नि में जलोगे, जलते कड़ाहों में, आग के उबलते कड़ाहों में डाले जाओगे। या तो तुम्हें भयभीत कर दूं। या प्रलोभित कर दूं कि स्वर्ग में अप्सराएं तुम्हारी प्रतीक्षा कर रही हैं। अगर श्रद्धा की तो स्वर्ग, अश्रद्धा की तो नर्क। या तो तुम्हें इस तरह से जबर्दस्ती धकाऊं, जो कि गलत है। क्योंकि जिसने भय के कारण राम को जपा उसने जपा ही नहीं, भय को ही जपा। जो डर के कारण नैतिक बना, वह नैतिक बना ही नहीं। पुलिस वाले के डर से तुमने चोरी न की, यह भी कोई अचोर होना हुआ! नर्क के भय से तुमने बेईमानी न की, यह भी कोई ईमानदारी हुई! नर्क के कड़ाहों में जलाए जाओगे, इस भय से तुमने ब्रह्मचर्य धारण कर लिया, यह भी कोई कामवासना से मुक्ति हुई! यह तो कंडीशनिंग है। ये तो संस्कारित करने की तरकीबें हैं। __ रूस में एक बड़ा मनोवैज्ञानिक हुआ, पावलफ। उसने तो...अब रूस तो नास्तिक मुल्क है, लेकिन पावलफ की बातें रूस के लोगों को भी जमीं। किसी ने यह बात खोजबीन नहीं की कि पावलफ जो कह रहा है वह तथाकथित धार्मिकों से भिन्न बात नहीं है। पावलफ ने कहा कि किसी को भी बदलना हो, तो समझाने-बुझाने की जरूरत नहीं है।
समझो कि एक आदमी सिगरेट पीता है। तो इसको समझाने की जरूरत नहीं है; और न सिगरेट के पैकिट पर लिखने की जरूरत है कि सिगरेट पीना हानिकारक है। इससे कुछ भी न होगा। इससे सिगरेट न छूटेगी, सिर्फ हानि के प्रति वह अंधा हो जाएगा। रोज-रोज पैकिट पर पढ़ता रहेगा, तो हानि शब्द का जो परिणाम होना था वह भी न होगा। अगर इसको बदलना है, तो पावलफ ने कहा कि जब यह
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