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अस्तित्व की विरलतम घटना : सदगुरु
मेरे पास तो रोज लोग आते हैं। उनमें जो आदमी नास्तिकता से गुजरा है, उसकी शान और! उनमें जिस आदमी ने नास्तिकता की पीड़ा झेली है, संदेह को भोगा है, संदेह के कांटों में गुजरा है, इनकार जिसने किया है, उसके स्वीकार का मजा और! गरिमा और! जिसको ना कहने में डर लगता है, उसके हां की कितनी कीमत हो सकती है? उसकी हां नपुंसक है। जिसने कभी नहीं नहीं कहा, उसकी हां का भरोसा मत करना। वह हां कमजोर की हां है; बलशाली की नहीं।
बुद्ध ने लोगों को बलशाली की हां सिखायी। बुद्ध ने कहा ना कहो; डरो मत। क्योंकि ना कहना न सीखोगे तो हां कैसे कहोगे? हां आगे की मंजिल है। ना के पहले नहीं, ना के बाद है। कहो दिल खोलकर ना।।
बुद्ध ने मनुष्य को पहली दफा धर्म की सबलता दी। उसके पहले धर्म निर्बल का था। लोग कहते हैं, निर्बल के बल राम। बुद्ध ने लोगों को सबलता दी, बल दिया; और कहा, डर है ही नहीं; क्योंकि राम तो है ही। इसलिए भय मत करो। तुम्हारे ना कहने से राम नहीं नहीं हो जाता। और तुम्हारे हां कहने से राम हो नहीं जाता। लेकिन तुम्हारे ना कहने से तुम होना शुरू होते हो। और जब तुम हो, तभी तो तुम हां कह सकोगे।
थोड़ा सोचो।
अगर तुम ना कहना जानते ही नहीं; या इतने डर गए हो, इतने पंगु हो गए हो कि तुमसे इनकार निकलता ही नहीं, तो तुमसे स्वीकार क्या निकलेगा? स्वीकार तो इनकार से बड़ी घटना है। इनकार तक नहीं निकलता। तुम रेगिस्तान भी नहीं हो अभी नास्तिकता के, तो तुम आस्तिकता के मरूद्यान कैसे हो सकोगे? तुम अभी रूखीसूखी नास्तिकता भी नहीं अपने में ला पाए, तो हरी-भरी, फूलों से सजी आस्तिकता कैसे ला पाओगे? आस्तिकता नास्तिकता के विपरीत नहीं है। आस्तिकता नास्तिकता के आगे है। आस्तिकता मंजिल है। नास्तिकता साधन है।
इसलिए बुद्ध ने एक नयी कीमिया दी है मनुष्य-जाति को, जिसमें नास्तिकता का भी उपयोग हो सकता है। और इसे मैं कहता हूं, बहुत अनूठी घटना। जब तुम नहीं का भी उपयोग कर पाओ, जब तुम अपने अंधकार का भी उपयोग कर पाओ, अपने अस्वीकार का भी उपयोग कर पाओ, तभी तुम पूरे विकसित हो सकोगे। जब तुम्हारा अंधकार भी प्रकाश की तरफ जाने का साधन हो जाए; जब तुम अपने अंधकार को भी रूपांतरित कर लो, वह भी प्रकाश का ईंधन बन जाए; जब तुम अपने इनकार को भी अपनी स्वीकार की सेवा में रत कर दो, वह दास हो जाए; तुम्हारी नास्तिकता आस्तिकता के पैर दबाए, तभी।
बुद्ध ने विचार दिया, विश्लेषण दिया, बुद्धि को अपने धर्म का प्रारंभ-बिंदु कहा, अंत नहीं। इसलिए तुम घबड़ाओ मत, कि बुद्ध दीक्षा क्यों देते हैं? घबड़ाओ मत, कि बुद्ध शिष्य क्यों बनाते हैं ? घबड़ाओ मत, कि बुद्ध धर्म, संघ और बुद्ध की