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________________ एस धम्मो सनंतनो और रुक जाते हैं। राह के किनारे झोपड़ा बना लेते हैं, वहीं ठहर जाते हैं, मंजिल तक नहीं पहुंचते। ये सब नास्तिक हो जाते हैं। इन नास्तिकों के कारण कुछ डर कर चलते ही नहीं । बुद्ध कहते हैं, जिनको तुम आस्तिक कहते हो वे झूठे आस्तिक हैं, और जिनको तुम नास्तिक कहते हो वे झूठे नास्तिक हैं। क्योंकि नास्तिकता का निर्णय तभी लेना उचित है जब बुद्धि की सीमा तक पहुंच गए हो। उसके पहले निर्णय नहीं लिया जा सकता। जब तक पूरा जाना ही नहीं, पूरा सोचा ही नहीं, तो कैसे निर्णय लोगे? और जो भी बुद्धि की सीमा पर पहुंच जाता है, उसे एक अनुभव आता है - बुद्धि की तो सीमा आ गयी, अस्तित्व आगे भी फैला है। तब उसे पता चलता है कि बुद्धि के पार भी अस्तित्व है। बहुत है जो बुद्धि के पार भी है। और जो बुद्धि के पार है, उसे बुद्धि से कैसे पाओगे? सुनो तेरी मंजिल पे पहुंचना कोई आसान न था सरहदे - अक्ल से गुजरे तो यहां तक पहुंचे सरहदे-अक्ल से गुजरे तो यहां तक पहुंचे बुद्धि की सीमा के पार जब गए तब तुझ तक पहुंचे, परमात्मा तक पहुंचे। तेरी मंजिल पे पहुंचना कोई आसान न था • जो चले ही नहीं और जिन्होंने श्रद्धा कर ली, वे तो कभी नहीं पहुंचे। उनका ईश्वर तो बस मान्यता का खिलौना है। उनका ईश्वर तो बस धारणा की बात है । वे तो भटका रहे हैं, भरमा रहे हैं अपने को। तुम्हारे मंदिर-मस्जिद तुम्हारी भ्रांतियां हैं, असली मंजिलें नहीं। पहुंचे तो वही, जो सरहदे - अक्ल से गुजरे। तो बुद्ध ने कहा, आओ । डरकर मत आस्तिक बनो। और नास्तिकता से भयभीत मत होओ। नास्तिकता आस्तिकता की तरफ पहुंचने की अनिवार्य प्रक्रिया है । बुद्ध के पहले तक लोग सोचते थे, आस्तिक-नास्तिक विरोधी हैं । बुद्ध ने नास्तिकता को आस्तिकता की प्रक्रिया बना दिया। इससे बड़ी कोई क्रांति घटित नहीं हुई है । बुद्ध ने कहा, नास्तिकता सीढ़ी है आस्तिकता की । हां, सीढ़ी पर बैठ जाओ तो तुम्हारी भूल है। सीढ़ी का कोई कसूर नहीं। मैं तुमसे कहूं कि चढ़ो ऊपर, छत पर जाने की यह रही सीढ़ी; तुम सीढ़ी पर ही बैठ जाओ, तो तुम कहो यह सीढ़ी तो छत की दुश्मन है। लेकिन सीढ़ी ने तुम्हें नहीं पकड़ा है। सीढ़ी तो चढ़ाने को तैयार थी। सीढ़ी तो चढ़ाने को ही थी। सीढ़ी का और कोई प्रयोजन न था । लेकिन सीढ़ी को तुमने अवरोध बना लिया। तुम उसी को पकड़ कर बैठ गए। नास्तिकता सीढ़ी है । और जो ठीक से नास्तिक नहीं हुआ, वह कभी ठीक से आस्तिक न हो सकेगा। इसे तुम सम्हालकर मन में रख लेना । 40
SR No.002378
Book TitleDhammapada 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages266
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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