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________________ एस धम्मो सनंतनो गलत चीजों को पीड़ा समझते रहोगे और उनको ठीक करने में लगे रहोगे, तभी तक तुम संसारी हो। जिस दिन तुम्हें ठीक पीड़ा समझ में आ जाएगी कि यह रही पीड़ा, हाथ पड़ जाएगा पीड़ा पर, तब तुम पाओगे कि पीड़ा यही है लो हम बताएं गुंचा और गुल में है फर्क क्या एक बात है कही हुई एक बेकही हुई जब तक तुम जिस गीत को अपने भीतर लिए चल रहे हो सदियों-सदियों से, जन्मों-जन्मों से, वह गीत गाया न जा सके; जिस नाच को तुम अपने पैरों में सम्हाले चल रहे हो, जब तक वह नाच घूघर बांधकर नाच न उठे; तब तक तुम पीड़ित रहोगे। उस नाच को हमने परमात्मा कहा है। उस गीत के फूट जाने को हमने निर्वाण कहा है। उस फूल के खिल जाने को हमने कैवल्य कहा है। तुम्हारी कली फूल बन जाए—मुक्ति, मोक्ष, मंजिल आ मयी। दूसरा प्रश्नः बुद्ध विचार, विश्लेषण और बुद्धि को अपने धर्म का प्रारंभ-बिंदु बनाते हैं; तथा श्रद्धा, आस्था और विश्वास की मांग नहीं करते। फिर दीक्षा क्यों देते हैं? शिष्य क्यों बनाते हैं? बुद्ध, धम्म और संघ के शरणत्रय से साधना की शुरुआत क्यों करवाते हैं? वद श्रद्धा के विरोधी नहीं हैं। बुद्ध से बड़ा श्रद्धा का कोई पक्षपाती नहीं हुआ। लेकिन बुद्ध श्रद्धा को थोपते नहीं, जन्माते हैं। दूसरों ने श्रद्धा थोपी है। दूसरे कहते हैं, श्रद्धा करो। अगर न किया तो पाप है। बुद्ध कहते हैं, विचार करो। अगर ठीक विचार किया, श्रद्धा आएगी। अपने से आएगी। बुद्ध तुम्हें चलाते हैं श्रद्धा की तरफ, दूसरे तुम्हें धकाते हैं। चलाने और धकाने में बड़ा फर्क है। बुद्ध तुम्हें फुसलाते हैं श्रद्धा की तरफ, दूसरे तुम्हें धमकाते हैं। वे कहते हैं, श्रद्धा न की, तो नर्क में सड़ोगे। श्रद्धा की, तो स्वर्ग में फल पाओगे। दूसरे तुम्हें लुभाते हैं या भयभीत करते हैं। शब्द है हमारे पास ईश्वर-भीरु, गॉड फियरिंग। दूसरे धर्म डरवाते रहे हैं। वे कहते हैं, डरो ईश्वर से। छोटे-मोटे लोगों की बात छोड़ दें, महात्मा गांधी जैसे व्यक्ति भी कहते हैं, मैं किसी और से नहीं डरता सिवाय ईश्वर को छोड़कर। पर डरते तो हो ही। इससे क्या फर्क पड़ता है कि ईश्वर से डरते हो? और बड़े मजे की बात है, संसार से डरते तो ठीक भी था; ईश्वर से डरते हो? ईश्वर से डरने का तो 38
SR No.002378
Book TitleDhammapada 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages266
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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