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________________ अस्तित्व की विरलतम घटना : सदगुरु मेरे देखे मनुष्य की पीड़ा यही है। पीड़ा तुम जिसे कहते हो, वह पीड़ा नहीं है। कभी तुम कहते हो, पैर में कांटा लग गया, सिर में दर्द है, नौकरी नहीं मिली, पत्नी मर गयी–ये असली पीड़ाएं नहीं हैं। पत्नी न मरे, पैर में कांटा न लगे, सिर में दर्द न हो, तो भी पीड़ा रहेगी। पीड़ा एक है, और वह पीड़ा यह है कि जो तुम लेकर आए हो वह लुटा नहीं पाए अब तक। जो तुम सम्हाले चल रहे हो उसे बांट नहीं पाए। तुम एक ऐसे मेघ हो जो बरसना चाहता है और बरस नहीं पाता है। तुम एक फूल हो जो खिलना चाहता है और खिल नहीं पाता। तुम एक ज्योति हो जो जलना चाहती है और जल नहीं पाती। यही पीड़ा है। कांटे का लग जाना, सिर का दर्द, पत्नी का मर जाना, पति का न होना, बहाने हैं। इन बहानों की खूटियों पर तुम असली पीड़ा को ढांककर अपने को धोखा दे लेते हो।। थोड़ा सोचो, कोई पीड़ा न रहे जिसको तुम पीड़ा कहते हो, क्या तुम आनंदित हो जाओगे? इतना क्या काफी होगा कि सिर में दर्द न हो? आनंदित होने के लिए क्या इतना काफी होगा कि कांटा न लगे? क्या इतना काफी होगा कि कोई बीमारी न आए? क्या इतना काफी होगा कि भोजन, वस्त्र, रहने की सुविधा हो जाए? क्या इतना काफी होगा कि प्रियजन मरें न? विज्ञान इसी चेष्टा में लगा है। क्योंकि विज्ञान ने सामान्य आदमी की पीड़ा को ही असली पीड़ा समझ लिया है। इससे कोई भेद न पड़ेगा। वस्तुतः स्थिति उलटी है। जब तुम्हारी सामान्य पीड़ाएं सब मिटा दी जाएंगी, तब ही तुम्हें पहली दफा पता चलेगा उस महत पीड़ा का, असली पीड़ा का। क्योंकि तब बहाने भी न रह जाएंगे। तुम कहोगे सिर में दर्द भी नहीं, पैर में कांटा भी नहीं, पत्नी भी जिंदा है, मकान भी है, वस्त्र भी है, भोजन भी है, सब है। सब है, और कुछ खोया है। सब है, और कहीं कुछ रिक्त और खाली है। इसलिए अमीर आदमी पहली दफा पीड़ित होता है। गरीब की पीड़ा तो हजार बहानों में छिप जाती है। वह कहता है, मकान होता तो सब ठीक हो जाता, मकान नहीं है। वर्षा में छप्पर में छेद हैं, पानी गिर रहा है, छप्पर ठीक होता तो सब ठीक हो जाता। उसे पता नहीं कि ठीक छप्पर बहुतों के हैं, कुछ भी ठीक नहीं हुआ है। उसके पास कम से कम एक बहाना तो है। अमीर के पास वह बहाना भी न रहा। उस हालत में अमीर और गरीब हो जाता है। उसके पास बहाना तक करने को नहीं है, कि वह किसी चीज पर अपनी पीड़ा को टांग दे और कह दे कि इसके कारण पीड़ा है। अकारण पीड़ा है। उस अकारण पीड़ा से ही धर्म का जन्म है। ___पीड़ा क्या है? पीड़ा ऐसी ही है जैसे कोई स्त्री गर्भवती हो, नौ महीने पूरे हो गए हों, और बच्चा पैदा न होता हो। बोझ हो गया। बच्चा पैदा होना चाहिए। कितने जन्मों से तुम परमात्मा को गर्भ में लिए चल रहे हो। वह पैदा नहीं हो रहा है, यही पीड़ा है। ठीक पीड़ा को पहचान लेना रास्ते पर अनिवार्य कदम है। जब तक तुम 37
SR No.002378
Book TitleDhammapada 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages266
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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