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________________ एस धम्मो सनंतनो और ये तीन सूत्र बहुमूल्य हैं। बुद्ध कहते हैं, वासना दुष्पूर है-स्वभाव की ओर इंगित करते। उपनिषद कहते, जिन्होंने भोगा उन्होंने त्यागा-परिणाम की ओर इंगित करते। मैं कहता हूं, न भोगो न त्यागो, जागो-मैं विधि देता हूं कि कैसे तुम जानोगे कि बुद्ध ने जो कहा, सही है; कैसे तुम जानोगे कि उपनिषद ने जो कहा, सत्य है। तुम जानोगे तभी उपनिषद सच होंगे। तुम जानोगे तभी बुद्ध सच होंगे। तुम्हारे जानने के अतिरिक्त न तो बुद्ध सच हैं, न उपनिषद सच हैं। तुम्हारा बोध ही प्रमाण होगा बुद्ध की सचाई का।। __ इसलिए बुद्ध ने कहा है किसी ने पूछा कि हम कैसे तुम्हारा सम्मान करें, हम कैसे कृतज्ञता-ज्ञापन करें, इतना दिया है-बुद्ध ने कहा है, मैंने जो कहा है तुम उसके प्रमाण हो जाओ; मैंने जो कहा है तुम उसके गवाह हो जाओ, बस मेरा सम्मान हो गया। और कुछ धन्यवाद की जरूरत नहीं है। ___तुम जिस दिन भी बुद्ध के गवाह हो जाओगे, जिस दिन तुम प्रमाण हो जाओगे कि उपनिषद जो कहते हैं सही है, उसी दिन तुमने उपनिषद को जाना, उसी दिन तुमने बुद्ध को पहचाना। फर्क बहुत ज्यादा नहीं है बुद्ध में और तुममें। उपनिषद में और तुममें फर्क बहुत ज्यादा नहीं है। ऐसे बहुत ज्यादा मालूम होता है। ऐसे जरा भी ज्यादा नहीं है। फर्क बड़ा थोड़ा है। तुम सोए हो, बुद्ध जागे हैं। तुम आंख बंद किए हो, बुद्ध ने आंखें खोल ली हैं। एक गीत कल मैं पढ़ रहा था लो हम बताएं गुंचा और गुल में है फर्क क्या कली और फूल में फर्क क्या है? ... लो हम बताएं गुंचा और गुल में है फर्क क्या एक बात है कही हुई एक बेकही हुई बस इतना ही फर्क है। __एक बात है कही हुई एक बेकही हुई बुद्ध फूल हैं, तुम कली हो। उपनिषद खिल गए, तुम खिलने को हो। जरा सा फर्क है। ऐसे बहुत बड़ा फर्क भी है। क्योंकि उतने ही फर्क पर तो सारा जीवन रूपांतरित हो जाता है। कली बस कली है। सिकुड़ी और बंद। मुझ भी सकती है। जरूरी नहीं है कि फूल बने। बन भी सकती है, चूक भी सकती है। और कली में कोई गंध थोड़े ही है। गंध तो तभी आती है फूल में, जब खिलता है। जब गंध बिखरती है, हवाएं ले जाती हैं उसके संदेश को दूर-दूर। अभी तुम बंद कली हो। गंध को सम्हाले हो अभी। और जब तक बंटेगी न गंध तब तक तुम आनंदित न हो सकोगे। जब तक तुम लुटा न दोगे दोनों हाथों से, उलीच न दोगे अपनी गंध को जिसे तुम लिए चल रहे हो...।
SR No.002378
Book TitleDhammapada 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages266
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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