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एस धम्मो सनंतनो
__तो मैं कहता हूं, न भोगो न त्यागो, जागो। क्योंकि अगर भोगने में डूब गए, भूल गए, तो कौन जानेगा? कौन पहचानेगा वासना के स्वभाव को कि वासना दुष्पूर है? तुम भोगने में खो सकते हो बड़ी आसानी से। और फिर घबड़ाकर भाग भी सकते हो। बहुत दिन भरा और न भर पाया, फिर तुम भाग भी सकते हो त्याग की तरफ। लेकिन मूर्छित भोग, मूर्छित त्याग समानधर्मा हैं। उनमें कुछ भी भेद नहीं। मंदिर में बैठो कि मकान में, दुकान में बैठो कि हिमालय पर, कुछ अंतर नहीं है। अगर तुम मूर्छित हो, तो तुम वही हो। अंतर तो केवल एक है, क्रांति तो केवल एक है-मूर्छा से जागरण की। ___ इसलिए बुद्ध कहते हैं वासना का स्वभाव। उपनिषद कहते हैं वासना का अनुभव। और मैं तुम्हें दे रहा हूं सूत्र वासना को अनुभव करने का। ये तीनों जुड़े हैं। इनमें से तुम एक भी चूके तो भूल हो जाएगी। अगर तुमने इन तीन में से एक भी सूत्र को विस्मरण किया तो भटक जाओगे। फिर अगर विस्मरण ही करना हो, तीन सूत्र अगर ज्यादा मालूम पड़ते हों, तो मेरे अंतिम सूत्र को ही याद रखना। क्योंकि अगर अंतिम सूत्र याद रहा तो बाकी दो अपने से याद रह जाएंगे। __ वासना दुष्पूर है, ऐसा बुद्ध कहते हैं। ऐसा तुमने अभी जाना नहीं। भोग अंततः त्याग में ले जाता है, ऐसा उपनिषद कहते हैं। तुम्हें अभी ले नहीं गया। वासना में तुम इतने दिन जीए हो, बुद्ध से थोड़े ज्यादा ही जीए हो-बुद्ध को तो पच्चीस सौ साल हो गए छुटकारा पाए-तुम पच्चीस सौ साल ज्यादा अनुभवी हो, फिर भी तुम्हें वासना दुष्पूर न दिखी। उपनिषद को तो लिखे पांच हजार साल हो गए। जिन्होंने भोगा उन्होंने त्याग दिया। और तुमने इतना भोगा और अभी तक न त्यागा। जरूर कोई चूक हो रही है। जागकर भोगो। भागने में मत पड़ना; अन्यथा मैं देखता हूं, तुम्हारे त्यागी, तुम्हारे महात्मा तुमसे जरा भी भिन्न नहीं। तुम अगर पैर के बल खड़े हो, वे सिर के बल खड़े हैं। मगर बिलकुल तुम जैसे हैं। उलटे खड़े होने से कहीं कुछ होता है! ___जिंदगी एक परीक्षण है। और जिंदगी एक निरीक्षण है। और जिंदगी प्रतिपल एक जागरण है। परीक्षा घट रही है प्रतिपल। न जागोगे, चूकते चले जाओगे। और न जागने की आदत बन जाए, तो अनंत काल तक चूकते चले जाओगे। और बहुत से रास्ते में स्थान मिलेंगे, जहां लगेगा कि मिल गयी मंजिल, और बहुत बार विश्राम करने का मन हो जाएगा, लेकिन जब तक परमात्मा ही न मिल जाए, या जिसको बुद्ध निर्वाण कहते हैं वही न मिल जाए, तब तक रुकना मत। ठहर भले जाना, लेकिन ध्यान रखना कि कहीं घर मत बना लेना। . .
ताब मंजिल रास्ते में मंजिलें थीं सैकड़ों
हर कदम पर एक मंजिल थी मगर मंजिल न थी ताब मंजिल-उस सत्य की यात्रा के मार्ग पर...।
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