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________________ अस्तित्व की विरलतम घटना : सदगुरु पीछे-पीछे। यह कौन सी कठिनाई थी इसमें। नसरुद्दीन ने एक पात्र रखा घाट पर कुएं के। युवक थोड़ा हैरान हुआ, क्योंकि उसमें पेंदी न थी। नसरुद्दीन ने दूसरा पात्र कुएं में डाला, पानी भरा और पेंदी-शून्य पात्र में उंडेला। युवक ने कहा यह आदमी पागल है। सारा पानी बह गया और नसरुद्दीन ने तो देखा ही नहीं। उसने तो फिर कुएं में पात्र डाल दिया। फिर भरा। दो बार, तीन बार, चौथी बार युवक भूल गया कि यहां चुप रहना है। उसने कहा, रुकिए! यह तो ताजिंदगी न भरेगा। यह तो हम मर जाएंगे भर-भरकर तो भी न भरेगा, क्योंकि इसमें पेंदी नहीं है। नसरुद्दीन ने कहा, बस खतम हो गया संबंध। कहा था, श्रद्धा रखना, चुप रहना। और पेंदी से हमें क्या लेना-देना? मुझे पात्र में पानी भरना है, पेंदी से क्या प्रयोजन? फिर मुझे जब पात्र में पानी भरना है तो मैं उसके ऊपर ध्यान रख रहा हूं कि जब सतह पर पानी आ जाएगा...। पेंदी से क्या प्रयोजन ? उस युवक ने कहा, या तो आप पागल हो, और या मैंने अपनी बुद्धि गंवा दी। - नसरुद्दीन ने कहा, जाओ। दुबारा इस तरफ मत आना। क्योंकि असफल हो गए, चुप न रह सके। अभी तो और बड़े इम्तहान आने को थे। __ वह युवक लौट तो गया लेकिन बड़ा परेशान हुआ। रातभर सो न सका। क्योंकि उसने सोचा कि इतनी सी बात तो किसी मूढ़ को भी दिखायी पड़ जाएगी। जरूर इस आदमी का कोई दूसरा ही प्रयोजन होगा, कोई परीक्षा थी। मुझे चुप खड़े रहना चाहिए था। मैं चूक गया। यह गुरु मिला तो अपने हाथ से चूक गया। मेरा क्या बिगड़ता था। अगर पानी न भरता था, तो उसका पात्र था। अगर श्रम व्यर्थ जाता था, तो उसका जाता था। मैं तो चुपचाप खड़ा रहता। आखिर कितनी देर यह चलता? मैंने जल्दी की। मैं चूक गया। _वह दूसरे दिन वापस आया। बहुत क्षमा मांगने लगा। नसरुद्दीन ने कहा कि नहीं, जितनी समझदारी तूने मुझे बतायी अगर इतनी ही समझदारी तू अपनी जिंदगी के प्रति बताए, तो मेरे पास आने की कोई जरूरत नहीं। जिस पात्र को तू भर रहा है, उसमें पेंदी है? उसने कहा, कौन सा पात्र? नसरुद्दीन ने कहा, फिर तू चूक गया, उतना ही इशारा था। तुझे दिखायी पड़ गया कि पात्र में पेंदी न हो तो भरा नहीं जा सकता। तूने इतने दिन से वासनाएं भरी हैं, कामनाएं भरी हैं-भरीं ? अब तक नहीं भर पायीं। कहीं ऐसा तो नहीं कि उनमें पेंदी नहीं? लेकिन फुरसत कहां है हमें? कौन चिंता करता है पेंदी की? जब भरना है तो हम भरने का विचार करते हैं। नहीं भर पाते तो सोचते हैं, दूसरे बाधा डाल रहे हैं। नहीं भर पाते तो सोचते हैं, श्रम जितना करना था उतना नहीं किया। भाग्य ने साथ न दिया। हजार कारण खोज लेते हैं। पर एक बात नहीं देखते, कहीं ऐसा तो नहीं कि वासना दुष्पूर है। 33
SR No.002378
Book TitleDhammapada 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages266
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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